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एकाकी आत्मा : बनती है परमात्मा
'अप्पा सो परमप्पा' सूत्र से स्पष्ट ध्वनित होता है कि अकेली आत्मा ही परमात्मा बन सकती है। आत्मा के साथ जो परभावों और विभावों की भारी भीड़ लगी है, उसे साथ लेकर वह परमात्मा बनना चाहे या परमात्मा के धाम में प्रवेश करना चाहे तो नहीं कर सकती । व्यावहारिक जीवन का यह जाना-माना सूत्र है कि कोई भी प्राणी या मानव जब मरता है, तब परलोक में उसके साथ कोई नहीं जाता है और परलोक से इस लोक में जब कोई जन्म लेने आता है, तब भी अकेला ही आता है। एकत्व भावना का यह दोहा प्रसिद्ध है
आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय । यों कबहुँ या जीव को, साथी सगो न कोय ।।
जिस प्रकार सांसारिक (इहलौकिक पारलौकिक) गति' आगति के विषय में आत्मा का अकेलापन प्रसिद्ध है, वैसे ही परमात्म-प्राप्ति (मुक्ति-सिद्धि गति) के विषय में भी यही नियम है कि आत्मा नितान्त अकेली हो जाए, तभी वह मोक्ष या परमात्मपद प्राप्त कर सकती है । सांसारिक गतिआगति में तो आत्मा के साथ तैजस्कार्माणशरीर, शुभाशुभ कर्म आदि उसके साथ जाते हैं, अन्य कोई भी सजीव या निर्जीव पर-पदार्थ जीव के साथ नहीं जाते, किंतु मोक्षगति
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