Book Title: Appa so Parmappa
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 390
________________ हृदय का सिंहासन : परमात्मा का आसन | ३७५ निरुत्साहता नहीं होती। वह मनोज्ञ परभावों के मोहक प्रलोभनों में नहीं पड़ता, उसका विश्वास और धैर्य क्षीण नहीं होता, साहस और उत्साह शिथिल नहीं होता। आपत्तियों, संकटों और उपसर्गों, परीषहों के समय भय और आशंका से प्राण सूखने की नौबत नहीं आती। मुक्तिरूपी गाड़ी के कुशल अनुभवी संचालक होने से आत्मार्थी के मन में परमात्मभाव या मोक्ष तक पहुँचने का अटल-अचल विश्वास होता है, उसे कहीं धोखा या बोझ मालूम नहीं होता। परमात्मभाव (मोक्ष) यात्री के अन्तर्हृदय में मार्गदर्शक प्रभु द्वारा साहस, उत्साह, मनोबल और धैर्य में वृद्धि कर देने से वह आत्मबल, आत्मविश्वास एवं धैर्य के साथ निश्चित और स्वस्थ होकर मुस्तैदी से मुक्तिमार्ग पर अपने कदम बढ़ाता रहता है और एक दिन मंजिल तक पहुँच जाता है । ___ जैसे अबोध शिशू के सामने से माता ओझल हो जाती है, तो वह भयभीत और सशंक होकर इधर-उधर देखता है, किन्तु माता के निकटवर्ती होने की प्रतोति मन में होते ही वह स्वयं को सुरक्षित अनुभव करने लगता है, उत्साह और प्रसन्नता से खिल उठता है, इसी प्रकार मातृवत् परमात्मा भी आत्मार्थी साधक के हृदय से ओझल हो जाता है, उसकी दिव्य अन्तहष्टि से दिखाई नहीं देता, तब वह भयभीत, सशंक होकर स्वयं को असुरक्षित अनुभव करने लगता है। वह सोचने लगता है कि कहीं मैं इधरउधर कषायों के बीहड़ वन में भटक गया और रागद्वषादि आत्मधन के दुष्ट लुटेरों से मेरी आत्मरक्षा कैसे होगी ? किन्तु जब वह देखता है कि वात्सल्यमूर्ति मातृसम परमात्मा मेरे अन्तःकरण में स्थित है, तब वह आल्हादित हो उठता है, स्वयं को सुरक्षित अनुभव करने लगता है। उनका यह विश्वास ही उसे मोक्षयात्रा में आने वाले संकटों, विघ्न-बाधाओं आदि से सही-सलामत पार करके परमात्मभाव के आग्नेय पथ पर यात्रा करने में सहायक बन जाता है । उसके पैर आगे बढ़ने में लड़खड़ाते नहीं, न ही उसे मार्ग से भटकने को भीति रहती है और न ही विपत्तियों को देखकर उसका धैर्य एवं साहस टूटता है, क्योंकि उसका यह दृढविश्वास होता है कि मेरे अन्तर्हदय में अनन्तज्ञानानन्द-शक्ति-सम्पन्न परमात्मा विराजमान है, वे मेरे अतिनिकट हैं। वे मुझे परमात्मभाव की प्राप्ति (मुक्ति) के मार्ग में आने वाली दुविधाओं, उलझनों, कुण्ठाओं और किंकर्तव्यविमूढताओं को दूर करके साहसपूर्वक आगे बढ़ने की प्रेरणा और प्रोत्साहन देने वाले हैं। जब भी उनके आदेश-संदेश, कर्तव्य या मार्ग के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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