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३१८ | अप्पा सो परमप्पा पंचेन्द्रिय जीवों के वध, महारम्भ-महापरिग्रह, मांसाहार, हत्या, आगजनी, डकैती, चोरी, आदि के कारण अत्यन्त दुःखों और यातनाओं से भरी नारकीययोनि मिली है। जिन्होंने पूर्वजन्म में हत्या, कत्ल, अत्याचार, जालसाजी आदि भयंकर कुकृत्य किये हैं, वे मनुष्यगति पाकर भी सम्यक् बोधहीन, पंगु, कोढ़ी, लूले-लँगड़े, अन्धे, दुःसाध्य रोगग्रस्त, पीडित, कसाई, वेश्या, चोर, डकैत आदि बने हैं। इनसे मुझे यह प्रेरणा लेनी है कि मैं ऐसा कोई कुकृत्य न करू, हिंसा आदि आस्रवों से, क्र रता, हत्या, दंगा, आगजनी, लूटपाट, व्यभिचार, माँसाहार आदि से महारम्भ एवं महापरिग्रह से बचूं, जिससे कि मुझे ऐसो दुर्गति या दुर्योनि न मिले और मेरी ऐसी दुःस्थिति और दुर्बोधता न हो । साधु-साध्वी को आहार, विहार,निहार तथा शयन, आसन, आदि प्रत्येक क्रिया में प्रायः पृथ्वी, पानी, वनस्पति आदि का आलम्बन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लेना ही पड़ता है, इसलिए साधु वर्ग के लिए आगमों में पृथ्वीकाय संयम, अप्काय संयम, वायुकाय संयम, वनस्पतिकाय-संयम, तेजस्काय संयम, द्वीन्द्रिय,त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-पंचेन्द्रिय संयम, प्रेक्षा संयम, उत्प्रेक्षा संयम, अजीवकाय-संयम आदि तथा त्याग, तप, प्रत्याख्यान की बातें कही गई हैं। कोई कह सकता है कि सिंह, बाघ, सर्प, जंगली हाथी, भैंसा आदि क्र र हिंसा प्राणियों या क्र र मानव का आलम्बन साधु वर्ग को कब लेने का काम पड़ता है ? इसके उत्तर में यही कहना है कि सिंह आदि प्रायः तभी आक्रमण करते हैं, जब इनके साथ मनुष्य छेड़खानी करता है। कदाचित् छेड़खानी न करने पर भी वे साधु वर्ग पर हमला करने को उतारू हो जाते हैं अथवा कोई क्रूर मानव भी विश्वमित्र, विश्वहितैषी अज्ञातशत्रु साधुवर्ग पर आक्रमण करने को उद्यत हो जाते हैं, तो उसे यही समझना चाहिए कि उस क्रूर प्राणी के साथ पूर्वजन्म का कोई वैर विरोध है, उसी का वह बदला लेने आया होगा। यह मेरे ही कूकर्मों का फल है, इसमें यह दोषी नहीं, दोषी मेरा अपराधी आत्मा ही है। यह तो निमित्त है, उपादान मेरा आत्मा है। जैसे-भगवान् महावीर पर तीर्थंकर भव में एक ग्वाले ने कानों में कील ठोक दी थी। उस समय उन्हें भयंकर पीड़ा भी हुई थी, किन्तु उन्होंने उस ग्वाले पर कोई भी रोष-द्वेष नहीं किया, बल्कि उसे अपने पूर्वकृत कर्मों को भोगने में सहायक माना और अपने ही द्वारा त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में शय्यापालक के कानों में खोलता हआ शीशा उँडेलवाने के कृत क्रूरकर्म का दुष्फल माना और उसे समभाव से सहन किया । १ देखो, कल्पसूत्र में भगवान महावीर का जीवनवृत्तान्त ।
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