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परमात्म-शरण से परमात्मभाव-वरण | २८७
समुद्र में पुनः डूब जाती है। वह संसार-समुद्र में अपनी जीवननैया डूबते समय अहंकार, अज्ञान और मोह में मग्न रहता है, उस समय वह परमात्मारूपी कुशल नाविक को पुकारता नहीं है, तथा स्वयं भी जीवन नैया को अंधड़ों और तूफानों से सही-सलामत पार करना नहीं जानता। इसलिए वह धन, परिजन, साधन आदि का आश्रय लेकर वहीं दुःखों के तूफान में फंसकर अपनी जीवन नैया को डुबो देता है, उसको आत्मा भी संसार-समुद्र में नानागतियों और योनियों में भटकती रहती है। उसे परमात्मप्राप्ति का बोध और मार्ग नहीं मिल पाता ।
जो व्यक्ति संसार-सागर में अपनी जीवन-यात्रा करते समय अपने अन्तिम लक्ष्य का बोध और निश्चय कर लेता है । वीतराग परमात्मा इस मार्ग और मंजिल के पूर्ण अनुभवी हैं, वे संसार-समुद्र के पार हो चुके हैं, संसार के समस्त दुःखों तथा दुःखों के बीजरूप कर्मों, राग-द्वषादि कर्मरूप कारणों से सर्वथा मुक्त हो चुके हैं, और अनन्त ज्ञान-दर्शन-आनन्द एवं अनन्त आत्मशक्ति (वीर्य) से परिपूर्ण हैं, तथा जिज्ञासु आत्माथियों, मुमक्षओं या परमात्मपदप्राप्ति के इच्छुकों के लिए मार्गदर्शक एवं प्रेरक हैं। इस प्रकार के दृढ़ विश्वास एवं निश्चयपूर्वक उनकी शरण ग्रहण करता है वह अपनी जीवन नैया उनके हाथों में सौंप देता है। परमात्मा के गुणों और स्वभाव को स्वयं अपनाने लगता है। अपने हानि-लाभ, हार-जीत, सांसारिक सुख-दुःख, तथा अहंत्व-ममत्व, उतार-चढ़ाव, इन्द्रिय-विषयों के प्रति राग-द्वेष, मोह-घृणा, रुचि-अरुचि आदि समस्त द्वन्द्वों की भारी-भरकम गठड़ी सिर से उतार फेंकता है। परमात्मा की शरण स्वीकार कर लेने पर परमात्मभाव-प्राप्ति में मुख्य अवरोध रूप अहंकार पलायित हो जाता है । जीवन के समस्त विरोधी भाव, मन-वचन काया की स्वकल्पित दुष्प्रवृत्तियाँ दुश्चिन्ताएँ तथा शास्त्र एवं भगवान् की आज्ञा के विरुद्ध सभी प्रवृत्तियाँ या क्रियाएँ प्रायः बन्द हो जाती हैं। फिर उस परमात्म-शरणागत साधक का जीवन, अन्तिम मंजिल (परमात्म-प्राप्ति या परमात्मभाव) की ओर उसी तरह दूतगति से बढ़ने लगता है, जिस तरह अनुकुल हवा की लहरों का संयोग पाकर नौका मंजिल की ओर द्रुतगत से बढ़ने लगती है।
परमात्म-शरण से ऊर्जा वृद्धिगत होती है परमात्मा की शरण स्वीकार करने वाले साधक की परमात्मा के प्रति एकाग्रता, तन्मयता, तल्लीनता के कारण आत्मा से ऊर्जा प्रवाहित होकर समर्पित होती है, बदले में उधर परमात्मा की ओर से भी ऊर्जा
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