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परमात्म-शरण से परमात्मभाव-वरण | २८६
और शाश्वत मुक्तिधाम को प्राप्त कर पाओगे। इससे शरणागत साधक नफे में ही रहता है।
परमात्म-शरण से परमात्मा के महाप्रकाश का प्रवेश परमात्मा की शरणागति का यह नियम है कि वह शरणागत साधक के समग्र आत्म द्वारों को परम ऊर्जा की ओर खोल देती है । जो व्यक्ति सूर्य की ओर मुंह करके अपने नेत्र सूर्य की ओर उठा लेता है, अपने हृदय के द्वार खुले कर देता है और जिधर सूर्य घूमता है, उधर ही घूम जाता है, तो सूर्य का प्रकाश उसके रोम-रोम और रग-रग में पहुँच जाता है । उसके हृदय के अन्धकारयुक्त कक्षों में भी सूर्य का आलोक प्रविष्ट हो जाता है । जिससे वह नई स्फूर्ति, अपूर्व उत्साह, परम तेज एवं पुनर्जीवन पा जाता है। परमपितामह परमात्मा विश्व ऊर्जा के स्रोत (Universal Energy Sources) हैं, विश्वव्यापी ज्ञानरूप महाप्रकाश के परम प्रेरणा स्रोत हैं । जो व्यक्ति अपना मुख उनकी ओर कर लेता है, अपने दिव्य नेत्रों से उनकी ओर देखता है, तथा उनकी शरण ग्रहण करके अपने हृदय-कपाट उनकी ओर खोल देता है, तो वह महाप्रकाश परमात्मा के ज्ञानादि का प्रकाश, तथा उनकी परम ऊर्जा के परमाणु शरण स्वीकर्ता के रोम-रोम एवं रगरग में भर जाते हैं । ज्ञान का वह प्रकाश उसके समस्त अन्धकारपूर्ण आत्मप्रदेशों में भर जाता है, तब अज्ञान तिमिर मिट जाता है। ज्ञान के उस प्रकाश से उसे नई स्फूर्ति, नया उत्साह एवं नई उमंग मिलती है । ऊर्जा के परमाणु उसकी अन्तरात्मा में प्रविष्ट होने से उसे शुद्ध आत्म-गुणों में, रमण करके परमात्मभाव की ओर बढ़ते जाने की शक्ति मिलती है।।
परमात्मा की शरण परावलम्बी बनने के लिए नहीं कई स्थूल दृष्टि वाले लोग कहते हैं कि परमात्मा की शरण में चले जाओ और धर्म कर्म करना आदि सब कुछ उसी पर छोड़ दो। वही सब पापों से मुक्त कर देगा। स्वयं कुछ त्याग, तप, संयम, व्रत, नियम या ज्ञानदर्शन-चारित्र में पुरुषार्थ करने या कष्ट सहने की आवश्यकता नहीं।
१ भगवद्गीता अ. १८, श्लो. ६२ २ सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
-भगवद्गीता
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