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परमात्मा कैसा है, कैसा नहीं ? | १६१
अथवा वह कोई चमत्कारी देव बन जाये और उसको भी तथाकथित धर्मसम्प्रदाय वाले लोग भगवान् या अवतार कहने लगेंगे या किसी प्रभावशाली मानव को परमात्मा का प्रतिनिधि, महापुरुष, पैगम्बर, अवतार भगवान् आदि कहने लगेंगे। इसे भी सच्चे माने में परमात्मा नहीं कहा जा सकता।
____ कई लोग ईश्वर को सातवें आसमान पर शाही ठाठ-बाठ से बैठे हवा चलाते हुए सामन्तराजा के रूप में देखते हैं । अथवा कई धर्म के ठेकेदार राजा या शासक को ईश्वर का अंश मानते हैं। यह भी शुद्ध आत्मस्वरूप बनने वाला परमात्मा नहीं है ।
आत्मार्थी को ऐसा परमात्मा बनना भी अभीष्ट नहीं भगवद्गीता में ईश्वर को सर्वत्र हाथ, पैर, आँख, मस्तक और मुख वाला कहा गया है । उसे चारों ओर श्रोत्र (कान) वाला कहा गया है। उसे विश्व के कण-कण में व्याप्त कहा गया है ।1 ऐसा भी निरंजन निराकार शुद्ध परमात्मा नहीं माना जा सकता, क्योंकि परमात्मा का जब कोई आकार ही नहीं है, तब वह हाथ-पैर, आँख, मस्तक या कान वाला कैसे हो सकता है ? अतः परमात्मा का यह स्वरूप भी ठीक नहीं । अगर साकार परमात्मा (वीतराग सदेह परमात्मा) भी है तो वह भी अनन्त मस्तक, नेत्र
और चरण वाला नहीं हो सकता, अनन्तज्ञान-दर्शन-चारित्र वाला तो हो सकता है।
शुक्लयजुर्वेद में बताया गया है कि परमात्मा सब ओर आँखों वाला, सब ओर मुख वाला, सब ओर हाथ वाला और सब ओर पैर वाला है । वह सारी सृष्टि में व्याप्त है ।
परन्तु निरंजन, निराकार परमात्मा आँख, कान, पैर, मस्तक आदि वाला होगा तो वह परमात्मा कहाँ रहा ? वह तो एक जादूगर जैसा हो गया अथवा वह वैक्रिय शरीरधारी देव के समान हो गया, जो अनेक रूप या मनचाहे रूप बना सकता है। अतः यह भी परमात्मा का यथार्थ स्वरूप
१ सर्वतः पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतः श्रु तिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥ -भगवद्गीता अ० १३/१३ २ विश्वतश्चक्ष स्त विश्वतोमुखो, विश्वतः पाणिरुत विश्वतः पात् ।
--शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिनसंहिता अ० १७ मंत्र १६ ।
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