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परमात्मा को कहाँ और कैसे देखें ? | २१७
कुछ लोग कह देते हैं- अगर परमात्मा होता तो कहीं न कहीं दिखाई देता । मगर वह कहीं है ही नहीं । कुछ लोग परमात्मा को देखने के लिए चन्द्रमा पर पहुँच गए । जब प्रथम रूसी अन्तरिक्ष यात्री धरती पर वापस लौटा तो रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री ख ुश्चोव ने उससे पूछा'ईश्वर मिला ?' उसने कहा- 'मुझे तो कोई ईश्वर नहीं मिला । चन्द्रमा बिल्कुल खाली है ।'
यह बात सुनकर खुश्चोव ने रूस में लेनिनग्राड में बनी हुई अन्तरिक्ष अनुसन्धानशाला के द्वार पर यह वाक्य अंकित करवा दिया- "हमारे अन्तरिक्ष यात्री चन्द्रमा पर पहुँचे, लेकिन वहाँ भी उन्हें ईश्वर मिला नहीं ।"
कई लोग कहते हैं कि "ईश्वर सातवें आसमान पर है । वहाँ वह शाही ठाठ-बाट से बैठा हुआ हुक्म चलाता है । ""
जिनको जमीन पर परमात्मा नहीं मिलता, उन्हें चन्द्रमा पर या सातवें आसमान पर भी वह कैसे मिलेगा ? परमात्मा को देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए, वह हर एक व्यक्ति के पास थोड़े ही होती है ।
परमात्मा तीर्थों और देवालयों में नहीं, अपनी अन्तरात्मा में है
परमात्मा को खोजने के लिए अथवा उनको देखने (दर्शन करने) के लिए कई लोग विविध तीर्थों में तथा देवालयों में जाते हैं । किन्तु जिनकी दिव्यदृष्टि खुली हुई नहीं है, उन्हें तोर्थों और देवालयों में परमात्मा कहाँ मिल सकते हैं ? इसीलिए 'योगसार' ग्रन्थ में कहा गया है
"तिथह देवल देव वि, इम सुईकेवलि वुत्तु । "
तीर्थों और देवालयों में वस्तुतः देवाधिदेव परमात्मा नहीं है, ऐसा श्रुतकेवली भगवान् ने कहा है ।
वस्तुतः परमात्मा कहीं बाहर नहीं है, वह तो अपनी अन्तरात्मा में ही स्थित है, किन्तु स्थूलबुद्धि वाले भोले-भाले लोग परमात्मा को ढूंढनेदेखने और पाने के लिए अपने मनोनीत पर्वत, नदी, गुफा, तीर्थ या मनोनीत देवालय में जाते हैं । मुग्ध लोग अमुक-अमुक तीर्थ में परमात्मा मिलेंगे या उनके दर्शन होंगे, यह सोचकर वहाँ चक्कर लगा आते हैं । जो इस
१ योगसार गा. ४२
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