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परमात्मा को कहाँ और कैसे देखें ? | २१५
वस्तुतः वीतराग-परमात्मा को देखना उनके शरीर को ही देखना नहीं है, वीतराग परमात्मा का वास्तविक दर्शन तो अनन्तज्ञानादि से युक्त उनकी आत्मा को देखना है। उसे सामान्य छद्मस्थ आत्मा इन चर्मचक्षुओं से नहीं देख सकता । और यह भी सत्य है कि जो परमात्मा को नहीं देख पाता, वह परमात्मा नहीं बन सकता।
छद्मस्थ आत्मा परमात्मा को कैसे जाने, कैसे देखे ? तब प्रश्न होता है कि सामान्य छद्मस्थ आत्मा वीतराग (जिन) परमात्मा को कैसे देखे, कैसे जाने ? यदि वीतराग परमात्मा को छद्मस्थ (अपूर्णज्ञानी) नहीं जान-देख सकता, तब तो कोई भी अम्बड परिव्राजक की तरह वैक्रियल ब्धि से तीर्थंकर महावीर या अन्य (वीतराग परमात्मा) का बाह्य रूप बनाकर कह सकता है और छल सकता है कि मैं जिनेन्द्र (वीतराग परमात्मा) हूँ। और भोले-भाले अन्धविश्वासी लोग उस जिनरूपधारी को वीतराग परमात्मा बताकर उसका वन्दन-कीर्तन-अर्चन करने को कहकर भुलावे में डाल सकता है।
इसका समाधान यह है कि बिना प्रमाण के किसी व्यक्ति को जिन (वीतराग) परमात्मा मानना ठीक नहीं। यदि जिन परमात्मा को देखनेजानने के लिए किसी के पास अभी प्रत्यक्ष प्रमाण का साधन नहीं है तो अनुमान, आगम आदि परोक्ष प्रमाणों के द्वारा उन्हें जाना-देखा जा सकता है। जिस प्रकार पंखे, मशीन, हीटर, कूलर, बल्ब आदि में बिजली प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देती, फिर भी उसके द्वारा होने वाले कार्यों को देखकर आप अनुमान लगा लेते हैं, तथा भौतिक विज्ञान के द्वारा जान लेते हैं कि बिजली अवश्य है, तभी तो पंखा चलता है, मशीन चल रही है, बल्ब प्रकाश देता है, हीटर गर्मी और कूलर ठण्डक देता है ।
चुम्बक एक ऐसी अदृश्य शक्ति है, जिसे इन आँखों से देखा नहीं जा सकता, किन्तु उसे लोहे की सूई में पिरो दिया जाता है तो वह कुतुबनुमा (दिशादर्शकयन्त्र) बनकर दिशाबोध करा देता है। इसी प्रकार वीतरागपरमात्मा का भी सच्चे माने में दर्शन, उनके अदृश्य तत्त्व होने से सामान्य छद्मस्थ आत्मा को नहीं हो पाते । किन्तु जब साधक की अन्तरात्मा की श्रद्धा और अन्तःकरण का दृढ़ विश्वास एकाकार होते हैं तो अपने अन्तःकरण में विराजमान शुद्ध आत्मतत्त्व को जगा लेता है और उसमें वह पर. मात्मतत्त्व के दर्शन कर लेता है।
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