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आत्म-समर्पण से परमात्म-सम्पत्ति की उपलब्धि | २८१ पदरूप परमपदार्थ प्राप्त हो जाता है । अन्त में, परमात्मा के प्रति समर्पण से उसे परमात्मा के अनन्तज्ञान-दर्शन-आनन्द और आत्मशक्ति की परमसम्पत्ति, अक्षयनिधि प्राप्त हो जाती है। वह जन्म-मरण, संसार परिभ्रमण, सिद्ध समस्तदुःख, कर्म और रागद्वषादि के चक्र से सदा के लिए स्वयं मुक्त परमात्मा बन जाता है।
१ इसी के समर्थन में कहा गया---
आतम-अर्पण वस्तु विचारतो, भरम टले, मति दोष, सुज्ञानी । परम-पदारथ सम्पत्ति संपजे, 'आनन्दघन'- रस पोष, सुज्ञानी ॥
-आनन्दधन चौबीसी पांचवां स्तवन
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