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परमात्मा कैसा है, कैसा नहीं ? | २११
"अनन्तसुख-सम्पन्नं, ज्ञानामतपयोधरम् ।। अनन्तवीर्यसम्पन्न, दर्शनं परमात्मनः ।। निर्विकारं निराधारं सर्वसंग विजितम् ।
परमानन्द सम्पन्नं शुद्धचैतन्यलक्षणम् ॥" अर्थात्-परमात्मा अनन्तसुख (आनन्द) से सम्पन्न हैं, ज्ञानामृत से परिपूर्ण हैं, अनन्त आत्मशक्ति सम्पन्न हैं, अनन्तदर्शन से युक्त हैं, वे निर्वि. कार, आधार से रहित (स्वयं अपने गुणों में हो प्रतिष्ठित), सर्वसंगरहित तथा शुद्ध चैतन्य रूप हैं। यही परमात्मा का यथार्थ स्वरूप है, जो आत्मार्थी साधक को अभोष्ट है ।
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