________________
१०६ | अप्पा सो परमप्पा
आगे का मोक्षपथ या परमात्मप्राप्ति-पथ विश्वासपूर्वक तय कर सकता है । आत्मानुभूति से पूर्व जो उसके मन में घबराहट, भीति, व्याकुलता, आशंका और अनिश्चितता थी, वह आत्मानुभूति के पश्चात् चित्त से विदा हो जाती है।
आत्मनुभवी के अनुभव की एक झलक जिसे आत्मानुभव हो जाता है, उसकी मनःस्थिति की एक झलक देखिये श्री चिदानन्द जी महाराज के शब्दों में--
आपे आप विचारतां, मन पाये विसराम ।
रसास्वाद-सुख ऊपजे, अनुभव ताको नाम ॥1 जब आत्मानुभव होता है, तब व्यक्ति का चित्त सहसा विचार-तरंगों से रहित एवं शान्त हो जाता है। चित्त को एक प्रकार की विश्रान्ति मिलती है । मन-मस्तिष्क समस्त चिन्ताओं, तनावों और द्वन्द्वों से रहित हो जाते हैं । प्रायः देह का भान नहीं रहता। देहाध्यास से परे हो जाता है, व्यक्ति का अन्तर्। ऐसा अनुभव जब आता है, तो अकस्मात् आता है। जैसे मेघों से आच्छादित अन्धकारपूर्ण रात्रि में बिलकुल अज्ञात स्थान में खड़े यात्री को सहसा चमकती और कड़कती बिजली की चमक से अपने आसपास का दृश्य स्पष्ट दिखाई देने लगता है, वैसे ही आत्मानुभव प्राप्त होते ही साधक को एक पल में आत्मा के निश्चय-शुद्ध-स्वरूप का साक्षात् हो जाता है । अपने अबद्ध, शुद्ध, शाश्वत और अगम्य स्वरूप का अनुभव हो जाता है, उसकी प्रतीति हो जाती है। श्रुत (शास्त्र) से प्राप्त जान की जैसे क्रमशः वृद्धि होती है, वैसे अनुभव से प्राप्त ज्ञान की नहीं होती परन्तु क्षण भर में ही पूर्व के अज्ञान या अस्पष्ट व शंकायुक्त आत्मज्ञान का स्थान भ्रान्तिरहित आत्मज्ञान ले लेता है । वर्षों तक मनोयोगपूर्वक आत्मजिज्ञासा मुमुक्षालक्ष्यी शास्त्राध्ययन से जो आत्मज्ञान प्राप्त होता है, उससे भी अधिक स्पष्ट, निश्चित और गहन आत्मज्ञान अल्पक्षणों में ही प्राप्त हो जाता है । यही है-आत्मानुभवयुक्त व्यक्ति की पहचान !
आत्मानुभूति का ज्वलन्त उदाहरण दक्षिण भारत के विश्वविख्यात संत श्री रमणमहर्षि को अपने
१. अध्यात्म बावनो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org