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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण-१ १७ संस्था का आधिपत्य प्राप्त भी कर ले, तो भी स्वपरहित की दृष्टि से उसका जीवन एकदम निकृष्ट, अधम और पतित होगा, जनता के हृदय में उसके लिए कोई स्थान नहीं रहेगा । ऐसा धर्माचरणहीन, स्वार्थी एवं कर्तव्यविमुख व्यक्ति किसी संस्था का आधिपत्य प्राप्त कर लेने पर अपनी गलतियों को छिपाने के लिए अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को सताता, दबाता रहता है, जिन लोगों से उसका वास्ता पड़ता है, उन्हें वह शोषित, उत्पीड़ित एवं त्रस्त करके दण्ड देता रहता है, उनसे रिश्वत लेकर हैरान करता है । यही दुर्नीति ऐसे दुष्टाधिप को ले डूबती है ।
अभी इस विषय के अनेक पहलू अवशेष हैं, जिन पर हम अगले प्रवचन में विचार करेंगे । आपसे यही अपेक्षा है कि महर्षि गौतम के संकेतानुसार किसी संस्था का आधिपत्य मिल जाने पर उसकी दुर्नीति से बचें।
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