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विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय ५२९५ विधायक सोच से भिक्षा की सुलभता। ५२९६ कुल परिश्रान्त क्यों? ५२९७-५२९९ तरुण मुनि के लिए बहिर्ग्राम में भिक्षाचर्या के लिए
जाने की सामाचारी। उससे संबद्ध बदरीवृक्ष का
दृष्टान्त। ५३००,५३०१ तरुण मुनियों द्वारा बहिमि में भिक्षाचर्या करने के
लाभ और दोषों से निवृत्ति। ५३०२,५३०३ उद्यान से आगे जाकर भिक्षा लाने में लगने वाले
दोष तथा वहीं भोजन करने पर आने वाला
प्रायश्चित्त। ५३०४,५३०५ यदि आचार्य के बिना भी तप-नियम गुण होते हैं
तो आहार की गवेषणा की बात क्यों ? शिष्य की
शंका। आचार्य का समाधान। ५३०६ बहिमि से गोचरी कर आचार्य के पास क्यों
लानी चाहिए? ५३०७ आचार्य द्वारा शिष्यों को प्रथमालिका करने की
अनुमति देने के कारण। ५३०८ प्रथमालिका करने के दोष। उसके प्रमाण के दो
प्रकार। ५३०९,५३१० साधुओं की पात्र संख्या और उनमें भक्तपान लेने
की विधि। ५३११
आपवादिक कारणों में बहिाम में विधिपूर्वक
भोजन करने का निर्देश। ५३१२ अन्तरपल्ली में गृहीत सारे भोजन को खाने का
निर्देश। ५३१३ पात्र भर जाने पर पर्याप्त खाकर पुनः भिक्षा
के लिए जाने का निर्देश अथवा काल अतिक्रान्त
की आशंका से बीच में खाने का निर्देश। ५३१४ अजानकारी में कालातिक्रान्त होने पर उत्सर्ग
अपवाद विधि। अणेसणिज्ज पाण-भोयण-पदं
सूत्र १४ ५३१५ अशुद्ध अचित्त आहार ग्रहण होने पर विधि का
प्रतिपादन।
अनेषणीय अचित्त द्रव्य की वर्जना। ५३१७-५३२७ अनाभोग से अनेषणीय आहार की यतना।
अयतना के दोष। अयतना से दिए जाने वाले
भक्तपान से शैक्ष के मन में उठने वाली शंकाएं। ५३२८,५३२९ अनुलोम वचनों से शिष्यों को प्रज्ञापित करने की
गाथा संख्या विषय
विधि। ५३३० शैक्ष मुनि के विपरिणत होने का कारण। ५३३१ शैक्ष को अनेषणीय भक्त देने पर आने वाला
प्रायश्चित्त। ५३३२ शैक्ष को प्रायोग्य अनेषणीय भक्तपान देने की
विधि। ५३३३-५३३५ शैक्ष के लिए निजी व्यक्तियों द्वारा भक्तपान देने
पर आचार्य को वर्जना करने का निषेध। ५३३६ अनेषणीय भोजन शैक्ष को देने की और उसके
परिष्ठापन की विधि। ५३३७ ऋद्धिमान् के प्रवजित होने पर होने वाले गुण ।
अनुवर्तना न करने पर प्रायश्चित्त। ५३३८ अशिव आदि कारणों में अनेषणीय भोजन करने
पर प्रायश्चित्त नहीं। कप्पट्ठिय-अकप्पट्ठिय-पदं
सूत्र १५ ५३३९
शैक्ष के अनेषणीय कल्प का कारण। ५३४० कल्पस्थित-अकल्पस्थित का स्वरूप। ५३४१ आधाकर्म भोजन के लिए साधुओं को निमंत्रण। ५३४२ आधाकर्म के एकार्थक। ५३४३-५३५० आधाकर्म किसको कल्पता है किसको नहीं?
उसका विभाग और वर्णन। ५३५१-५३५३ मुनियों के तीन प्रकार। कौन से तीर्थंकर के किस
प्रकार के मुनि होते हैं ? नटप्रेक्षण का दृष्टान्त।
भक्तपान निषेध से दृष्टान्त का उपनय। ५३५४,५३५५ प्रथम तीर्थंकर के साधुओं की तरह संज्ञातक
(गृहस्थ) भी ऋजुजड़। ५३५६ ऋजुजड़ मुनियों तथा गृहस्थों का स्वरूप। ५३५७ ऋजुप्राज्ञ मुनियों और गृहस्थों का स्वरूप। ५३५८ वक्रजड़ मुनियों और गृहस्थों का स्वरूप। ५३५९
आचार्य, अभिषेक और भिक्षुओं में से कोई ग्लान
होने पर आधाकर्म की भजना। ५३६० आचार्य द्वारा स्वयं प्रायश्चित्त ग्रहण करने की
विधि और उसका स्वरूप। ५३६१ तीर्थंकरों द्वारा धर्मदेशना करने का प्रयोजन।
अण्णगण-उवसंपदा-पदं
सूत्र १६ ५३६२ ज्ञान आदि के कारण गच्छान्तर में संक्रमण
विधायक सूत्र।
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