Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रतिपत्ति : स्वरूप और प्रकार ]
तं जहा–१ रूवि-अजीवाभिगमे य २ अरूवि-अजीवाभिगमे य। [३] अजीवाभिगम क्या है ? अजीवाभिगम दो प्रकार का कहा गया हैवह इस प्रकार-१ रूपी-अजीवाभिगम और २ अरूपी-अजीवाभिगम । ४. से किं तं अरूवि-अजीवाभिगमे ? अरूवि-अजीवाभिगमे दसविहे पण्णत्तेतं जहा-धम्मत्थिकाए एवं जहा पण्णवणाए जाव ( अद्धासमए), से तं अरूविअजीवाभिगमे। [४] अरूपी-अजीवाभिगम क्या है ? अरूपी-अजीवाभिगम दस प्रकार का कहा गया हैजैसे कि-१ धर्मास्तिकाय से लेकर १० अद्धासमय पर्यन्त जैसा कि प्रज्ञापनासूत्र में कहा गया है। यह अरूपी-अजीवाभिगम का वर्णन हुआ। ५. से किं तं रूवि-अजीवाभिगमे ? रूवि-अजीवाभिगमे चउबिहे पण्णत्तेतं जहा-खंधा; खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला। ते समासतो पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया एवं जहा पण्णवणाए (जाव लुक्ख फास-परिणया वि) से तं रूवि-अजीवाभिगमे से तं अजीवाभिगमे। [५] रूपी-अजीवाभिगम क्या है ? रूपी-अजीवाभिगम चार प्रकार का कहा गया हैवह इस प्रकार-स्कंध, स्कंध का देश, स्कंध का प्रदेश और परमाणुपुद्गल। वे संक्षेप से पाचं प्रकार के कहे गये हैं
जैसा कि-१ वर्णपरिणत, २ गंधपरिणत, ३ रसपरिणत, ४ स्पर्शपरिणत और ५ संस्थानपरिणत । इस प्रकार जैसा प्रज्ञापना में कहा गया है वैसा कथन यहाँ भी समझना चाहिए। यह रूपी-अजीव का कथन हुआ। इसके साथ ही अजीवाभिगम का कथन भी पूर्ण हुआ।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में जिज्ञासु प्रश्रकार न प्रश्न किये हैं और गुरु-आचार्य ने उनके उत्तर दिये
१. प्रज्ञापनासूत्र ५ २. प्रज्ञापनासूत्र ५