Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
२१. समवहत-असमवहतद्वार-मारणान्तिकसमुद्घात करके जो मरण होता है, वह समवहत है और मारणान्तिकसमुद्घात किये बिना जो मरण होता है, वह असमवहत है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में दोनों प्रकार का मरण है।
२२. च्यवनद्वार–वर्तमान भव पूरा होने पर उस भव का अन्त होना च्यवन है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव मर कर न तो नारकों में उत्पन्न होते हैं और न देवों में उत्पन्न होते हैं। वे तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं तो असंख्यात वर्षों की आयु वाले भोगभूमि के तिर्यंचों को छोड़ कर शेष एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त सब तिर्यंचों में उत्पन्न हो सकते हैं। यदि वे मनुष्यों में उत्पन्न हों तो अकर्मभूमिज, अन्तीपज और असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों को छोड़ कर शेष पर्याप्त या अपर्याप्त मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
___इस कथन द्वारा यह भी सिद्ध किया गया है कि आत्मा सर्वव्यापक नहीं है और वह भवान्तर में जाकर उत्पन्न होती है।
२३. गति-आगति द्वार-जीव मर कर जहाँ जाते हैं वह उनकी गति है और जीव जहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं वह उनकी आगति है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दो गति वाले और दो आगति वाले हैं। ये सूक्ष्म पृथ्वीकायिक मर कर तिर्यंच और मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं, नारकों और देवों में नहीं। अतः तिर्यंचगति और मनुष्यगति ही इनकी दो गतियाँ हैं।
ये सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव देवों और नारकों से आकर उत्पन्न नहीं होते। केवल तिर्यंचों और मनुष्यों . से ही आकर उत्पन्न होते हैं, अतः ये जीव दो आगति वाले हैं।
परीत-ये सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव प्रत्येकशरीरी हैं, असंख्येय लोकाकाश प्रमाण हैं । इस प्रकार सब तीर्थंकरों ने प्रतिपादित किया है।
समणाउसो-हे श्रमण! हे आयुष्मान् ! इस प्रकार सम्बोधन कर जिज्ञासुओं के समक्ष प्रभु महावीर ने सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के स्वरूप का प्रतिपादन किया। बादर पृथ्वीकाय का वर्णन
१४. से किं तं बायरपुढविकाइया ? बायरपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सण्ह बायरपुढविकाइया य खर बायरपुढविकाइया य। [१४] बादर पृथ्वीकायिक क्या हैं? बादर पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैंयथा-श्लक्षण (मृदु) बादर पृथ्वीकायिक और खर बादर पृथ्वीकायिक। १५. से किं तं सह बायरपुढविकाइया ?