Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ततीय प्रतिपत्ति: देववर्णन]
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लेश्या से दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए, सुशोभित करते हुए वे अपने वहाँ अपने-अपने भवनावासों का, अपने-अपने हजारों सामानिक देवों का, अपने-अपने त्रायस्त्रिंश देवों का, अपने-अपने लोकपालों का, अपनी-अपनी अग्रमहिषियों का, अपनी-अपनी परिषदाओं का, अपने-अपने सैन्यों (अनीकों) का, अपनेअपने सेनाधिपतियों का, अपने-अपने आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत से भवनवासी देवों और देवियों का आधिपत्य, पोरोहित्य (महानता), आज्ञैश्वरत्व (आज्ञा पालन कराने का प्रभुत्व) एवं सेनापतित्व आदि करते-कराते हुए तथा पालन करते कराते हुए अहत (अव्याहत-व्याघात रहित) नृत्य, गीत, वादिंत्र, तंत्री, तल, ताल, त्रुटित (वाद्य) और घनमृदंग बजाने से उत्पन्न महाध्वनि के साथ दिव्य एवं उपभोग्य भोगों को भोगते हुए विचरते हैं।
सामान्यतया भवनवासी देवों के आवास-निवास सम्बन्धी प्रश्नोत्तर के बाद विशेष विवक्षा में असुरकुमारों के.आवास-निवास सम्बन्धी प्रश्न किया गया है। इसके उत्तर में कहा गया है कि रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर व नीचे के एक-एक हजार योजन छोड़कर शेष एक लाख अठहत्तर हजार योजन के देशभाग में असुरकुमार देवों के चौसठ लाख भवनावास हैं। वे भवन बाहर से गोल, अन्दर से चौरस, नीचे से कमल की कर्णिका के आकार के हैं-आदि भवनावासों का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए।
__उन भवनावासों में बहुत से असुरकुमार देव रहते हैं। जो काले, लोहिताक्ष रत्न तथा बिम्बफल के समान ओठों वाले, श्वेत पुष्पों के समान दांत वाले, काले केशों वाले, बाएँ एक कुण्डल के धारक, गीले चन्दन से लिप्त शरीरवाले, शिलिन्ध्र-पुष्प के समान किंचित् रक्त तथा संक्लेश उत्पन्न न करने वाले सूक्ष्म अतीव उत्तम वस्त्र पहने हुए, प्रथम (कुमार) वय को पार किये हुए और द्वितीय वय को अप्राप्त-भद्रयौवन में वर्तमान होते हैं। वे तलभंगक (भुजा का भूषण) त्रुटित (बाहरक्षक) एवं अन्यान्य श्रेष्ठ आभूषणों से जटित निर्मल मणियों तथा रत्नों से मण्डित भुजाओं वाले, दस मुद्रिकाओं से सुशोभित अंगुलियों वाले, चूडामणि चिह्न वाले, सुरूप, महर्द्धिक महाद्युतिमान, महायशस्वी, महाप्रभावयुक्त, महासुखी, हार से सुशोभित वक्षःस्थल वाले आदि पूर्ववत् वर्णन यावत् दिव्य एवं उपभोग्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं।
इन्हीं स्थानों में दो असुरकुमारों के राजा चमरेन्द्र और बलीन्द्र निवास करते हैं। वे काले, महानील के समान, नील की गोली, गवल (भैंसे का सींग), अलसी के फूल के समान रंगवाले, विकसित कमल के समान निर्मल, कहीं श्वेत-रक्त एवं ताम्र वर्ण के नेत्रों वाले, गरुड़ के समान ऊँची नाक वाले, पुष्ट या तेजस्वी मूंगा तथा बिम्बफल के समान अधरोष्ठ वाले, श्वेत विमल चन्द्रखण्ड, जमे हुए दही, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण और मृणालिका के समान धवल दंतपंक्ति वाले, अग्नि में तपाये और धोये हुए सोने के समान लाल तलवों, तालू तथा जिह्वा वाले, अञ्जन तथा मेघ के समान काले रुचक रत्न के समान रमणीय एवं स्निग्ध बाल वाले, बाएं एक कान में कुण्डल के धारक आदि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् वे दिव्य उपभोग्य भोगों को भोगते हुए विचरते हैं।
दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के चौंतीस लाख भवनावास हैं। असुरकुमारेन्द्र, असुरकुमार राजा