Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति : नागकुमारों की वक्तव्यता]
[३३३
ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं दिवढें पलिओवमं ठिई पण्णत्ता, सेसं जहा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो।
[११९] हे भगवन् ! उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन कहाँ कहे गये हैं ?
गौतम ! जैसा स्थान पद में कहा गया है, वह कथन कहना चाहिए यावत् वहाँ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि निवास करता है यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है।
हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की कितनी पर्षदा कही गई हैं ?
गौतम ! तीन परिषदाएँ कही गई हैं, यथा-समिता, चंडा और जाता। आभ्यन्तर परिषदा समिता कहलाती है, मध्यम परिषदा चण्डा है और बाह्य परिषदा जाता है।
हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की आभ्यन्तर परिषदा में कितने हजार देव हैं ? मध्यम परिषदा में कितने हजार देव हैं यावत् बाह्य परिषदा में कितनी सौ देवियाँ हैं ?
गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की आभ्यन्तर परिषद् में बीस हजार देव हैं, मध्यम परिषदा में चौबीस हजार देव हैं और बाह्य परिषदा में अट्ठावीस हजार देव हैं। आभ्यन्तर परिषद् मे साढ़े चार सौ देवियाँ हैं, मध्यम परिषदा में चार सौ देवियाँ हैं। बाह्य परिषदा में साढ़े तीन सौ देवियाँ हैं।
हे भगवन् ! बलि की परिषदा की स्थिति के विषय में प्रश्न है यावत् बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति कितनी है ?.
गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े तीन पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की है और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति ढाई पल्योपम की है। आभ्यन्तर परिषद् की देवियों की स्थिति ढाई पल्योपम की है। मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति दो पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति डेढ़ पल्योपम की है, शेष वक्तव्यता असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की तरह कहनी चाहिए।' नागकुमारों की वक्तव्यता
[१२०.] कहिं णं भंते ! नागकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णत्ता? जहा ठाणपदे जाव दाहिणिल्लावि पुच्छियव्वा जावधरणे इत्थ नागकुमारिंदे नागकुमाररांया परिवसइ जाव विहरइ।
धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा तिण्णि परिसाओ ताओ चेव जहा चमरस्स।
१. देवदेविसंख्यास्थिति विषयक संग्रहणिगाथा
बीस चउवीस अट्ठावीस सहस्साण होन्ति देवाणं। अद्धपण चउठा देविसय बलिस्स परिसास ॥१॥ अद्भुट्ठ तिन्नि अड्ढाइज्जाइं होंति पलिय देव ठिई। अड्ढाइज्जा दोण्णि य दिवड्ढ देवीण ठिई कमसो ॥२॥