Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति :जंबूद्वीप क्यों कहलाता हैं ?]
[४३७
आधा योजन है। यह दस योजन जल के अन्दर है और दो कोस (आधा योजन) जल से ऊपर है। दोनों मिलाकर साढे दस योजन की इसकी ऊँचाई है।
उस कमल का स्वरूप-वर्णन इस प्रकार है-उसका मूल वज्रमय है, कुंद रिष्टरत्नों का है, नाल वैडूर्यरत्नों की है, बाहर के पत्ते वैडूर्यमय हैं, आभ्यन्तर पत्ते जंबूनद (स्वर्ण) के हैं, उसके केसर तपनीय स्वर्ण के हैं, स्वर्ण की कर्णिका है और नानामणियों की पुष्कर-स्तिबूका है।
वह कर्णिका आधा योजन की लम्बी-चौड़ी है, इससे तिगुनी से कुछ अधिक इसकी परिधि है, एक कोस की मोटाई है, यह पूर्णरूप से कनकमयी है, स्वच्छ है, श्लष्ण है यावत् प्रतिरूप है।
उस कर्णिका के ऊपर एक बहुसमरमणीय भूमिभाग है इसका वर्णन मणियों की स्पर्शवक्तव्यता तक कहना चाहिए। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्य में एक विशाल भवन कहा गया है जो एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और एक कोस से कुछ कम ऊँचा है। वह अनेक सैकड़ों स्तम्भों पर आधारित है आदि वर्णनक कहना चाहिए। . उस भवन की तीन दिशाओं में तीन द्वार कहे गये हैं-पूर्व में, दक्षिण में और उत्तर में। वे द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे हैं, ढाई सौ धनुष चौड़े हैं और इतना ही इनका प्रवेश है। ये श्वेत हैं, श्रेष्ठ स्वर्ण की स्तूपिका से युक्त हैं यावत् उन पर वनमालाएँ लटक रही हैं।
१४९.(२)तस्सणंभवणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागेपण्णत्ते, से जहानामएआलिंगपुक्खरेइ व जाव मणीणं वण्णओ। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं मणिपेढिया पण्णत्ता, पंचधणुसयाई आयामविक्खंभेणं अड्डाइज्जाइं धणुसयाई बाहल्लेणं सव्वमणिमई। तीसे णं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं एगे महं देवसयणिज्जे पण्णत्ते। देवसयणिज्जस्स वण्णओ।
से णं पउमे अण्णेणं अट्ठसएणं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्ताणं पउमाणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। तेणं पउमा अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं ते तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं कोसं बाहल्लेणं दस जोयणाई उव्वेहेणं कोसंऊसिया जलंताओ, साइरेगाइं ते दस जोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ताई।
तेसिं णं पउमाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया मूला जाव णाणामणिमया पुक्खरस्थिभुगा।ताओणं कण्णियाओ कोसंआयामविक्खंभेणंतं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं अद्धकोसंबाहल्लेणंसव्वकणगामईओअच्छाओ जावपडिरूवाओ।तासिंकणियाणं उप्पिं बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा जाव मणीणं वण्णो गंधो फासो।
___ तस्स णं पउमस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरच्छिमेणं नीलवंतहहस्स कुमारस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि पउमसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, एवं (एतेणं) सव्यो परिवारो नब्ररि पउमाणं भाणियव्यो।