Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 443
________________ ३९४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चैत्यस्तूप कहे गये हैं। वे चैत्यस्तूप दो योजन लम्बेचौड़े और कुछ अधिक दो योजन ऊँचे हैं। वे शंख, अंकरत्न, कुंद (मोगरे का फूल), दगरज (जलबिन्दु), क्षीरोदधि के मथित फेनपुंज के समान सफेद हैं, सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। उन चैत्यस्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, बहुत सी कृष्णचामर से अंकित ध्वजाएँ आदि और छत्रातिछत्र कहे गये हैं। उन चैत्यस्तूपों के चारों दिशाओं में अलग-अलग चार मणिपीठिकाएँ कही गई हैं। वे मणिपीठिकाएँ एक योजन लम्बी-चौड़ी और आधा योजन मोटी सर्वमणिमय हैं। उन मणिपीठिकाओं के ऊपर अलग-अलग चार जिन-प्रतिमाएँ कही गई हैं जो जिनोत्सेधप्रमाण (उत्कृष्ट पांच सौ धनुष और जघन्य सात हाथ; यहाँ पांच सौ धनुष समझना चाहिए) हैं, पर्यकासन (पालथी), से बैठी हुई हैं, उनका मुख स्तूप की ओर है। इन प्रतिमाओं के नाम हैं-ऋषभ, वर्द्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण। १३७.(३)तेसिंणंचेइयथूभाणं पुस्ओ तिदिसिंपत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओपण्णत्ताओ. ताओणं मणिपेढियाओ दो दो जोयणाई आयामविक्खंभेणंजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमईओ अच्छाओ लण्हाओ सहाओ घट्ठाओ मट्ठाओ निप्पंकाओ णीरयाओ जाव पडिरूवाओ। तासिं णं मणिपेढियाणं उप्पिं पत्तेयं पत्तेयं चेइयरुक्खा पण्णत्ता। ते णं चेइयरुक्खा अदुजोयणाई उड्डूं उच्चत्तेणं अद्धजोयणं उव्वेहेणं दो जोयणाइं खंधी अद्धजोयणं विक्खंभेणं छजोयणाई विडिमा वहुमझदेसभाए अट्ठजोयणाई आयामविक्खंभेणं साइरेगाइं अट्ठजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता। तेसिं णं चेइयरुक्खाणं अयमेयारुवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामयामूला रययसुपइट्टिया विडिमा रिट्ठामयविपुलकंदवेरुलियरुइलखंधा सुजातरुवपढमगविसालसाला नानामणिरयणविविहसाहप्पसाहवेरुयिपत्ततवणिज्जपत्तवेंटा जंबूणयरत्तमउयसुकुमालपवालपल्लवसोभंतवरंकुरग्गसिहरा विचित्तमणिरयणसुरभिकुसुमफलभरणमियसाला सच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया अमयरससमरसफला अहियं णयणमणणिव्वुइकरा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तेणंचेइयरुक्खाअन्नेहिं बहूहिं तिलय-लवय-छत्तोवग-सिरीस-सत्तवण्ण-दहिवण्णलोद्ध-धव-चन्दन-नीव-कुडय-कयंब-पणस-ताल-तमाल-पियाल-पियंगु-पारावयरायरुक्ख-नंदिरुक्खेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा मूलवंता कंदवंता जाव सुरम्मा। ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा अन्नेहिं बहूहिं पउमलयाहिं जाव सामलयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ। १. वरंकुधरा इति पाठान्तरम्।

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