Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 451
________________ ४०२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सोलसविहेहिं रयणेहिं उवसोभिया तं जहा-रयणेहिं जाव रिटेहिं। _[१३९] (२) उन जिनप्रतिमाओं के पीछे अलग-अलग छत्रधारिणी प्रतिमाएं कही गई हैं। वे छत्रधारण करने वाली प्रतिमाएं लीलापूर्वक कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त हिम, रजत, कुन्द और चन्द्र के समान सफेद आतपत्रों (छत्रों) को धारण किये हुये खड़ी हैं। उन जिनप्रतिमाओं के दोनों पार्श्वभाग में अलग-अलग चंवर धारण करने वाली प्रतिमाएँ कही गई हैं। वे चामरधारिणी प्रतिमाएँ चन्द्रकान्त मणि, वज्र, वैडूर्य आदि नाना मणिरत्नों व सोने से खचित और निर्मल बहुमूल्य तपनीय स्वर्ण के समान उज्ज्वल और विचित्र दंडों एवं शंख-अंकरन-कुंद-जलकण, चांदी एवं क्षीरोदधि को मथने से उत्पन्न फेनपुंज के समान श्वेत, सूक्ष्म और चांदी के दीर्घ बाल वाले धवल चामरों को लीलापूर्वक धारण करती हुई स्थित हैं। उन जिनप्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग प्रतिमाएँ, दो-दो यक्ष प्रतिमाएँ, दो-दो भूत प्रतिमाएँ, दोदो कुण्डधार प्रतिमाएँ (विनययुक्त पादपतित और हाथ जोड़े हुई) रखी हुई हैं। वे सर्वात्मना रत्नमयी हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, सूक्ष्म पुद्गलों से निर्मित हैं, घृष्ट-मृष्ट,नीरजस्क, निष्पंक यावत् प्रतिरूप हैं। उन जिनप्रतिमाओं के आगे एक सौ आठ घंटा, एक सौ आठ चन्दनकलश, एक सौ आठ झारियां तथा इसी तरह आदर्शक, स्थाल, पात्रियां, सुप्रतिष्ठक, मनोगुलिका, जलशून्य घड़े, चित्र, रत्नकरण्डक, हयकंठक यावत् वृषभकंठक, पुष्पचंगेरियाँ यावत् लोमहस्तचंगेरियाँ, पुष्पपटलक, तेलसमुद्गक यावत् धूप के कडुच्छुक-ये सब एक सौ आठ, एक सौ आठ वहाँ रखे हुए हैं। उस सिद्धायतन के ऊपर बहुत से आठ-आठ मंगल, ध्वजाएँ और छत्रातिछत्र हैं, जो उत्तम आकार के सोलह रत्न यावत् रिष्टरत्नों से उपशोभित हैं। २ उपपातादि सभा-वर्णन १४०. तस्सणं सिद्धाययणस्सणं उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थणंएगा महं उववायसभा पण्णत्ता। जहा सुधम्मा तहेव जाव गोमाणसीओ। उयवायसभाए वि दारा मुहमंडवा सव्वं भूमिभागे तहेव जाव मणिफासो। (सुहम्मासभावत्तव्वया भाणियव्वा जाव भूमीए फासो।) तस्स णं बहुसमरमणिज्जस भूमिभागस्स बहुमज्जदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमयो अच्छा। तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थ णं एगे महं देवसयणिज्जे पण्णत्ते।तस्स णं देवसयणिज्जस्स वण्णओ उववायसभाए णं उप्पिं अट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता जाव उत्तिमागारा। तीसेणं उववायसभाए उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थणंएगे महं हरए पण्णत्ते।सेणंहरए अद्धतेरस १. कोष्ठकान्तर्गत पाठ वृत्ति में नहीं है। २. अत्र संग्रहणिगाथे चंदणकलसा भिंगारगा य आयंसगा य थाला य। पाईओ सुपइट्ठा मणगुलिया वायकरगा य ॥१॥ चित्ता रयणकरंडा हय-गय-नर-कंठगा य चंगेरी। पडला सीहासण-छत्त-चामरा समुग्गकजुया य॥२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498