Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 423
________________ ३७४ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र देर तक उनकी ध्वनि सुनाई पड़ती है । मेघ समान गंभीर है, हंस के स्वर के समान मधुर है, क्रौंच पक्षी स्वर के समान कोमल है, दुन्दुभि के स्वर के तुल्य होने से नन्दिस्वर है, बारह प्रकार के बाघों के संघात के स्वर जैसा होने से नन्दिघोष है, सिंह की गर्जना के समान होने से सिंहस्वर है। उन घंटाओं का स्वर बड़ा ही प्रिय होने से मंजुस्वर है, उनका निनाद बहुत प्यारा होता है, अतएव मंजुघोष है। उन घंटाओं का स्वर अत्यन्त श्रेष्ठ है, उनका स्वर और निर्घोष अत्यन्त सुहावना है। ये घंटाएँ अपने उदार, मनोज्ञ एवं कान और मन को तृप्त करने वाले शब्द से आसपास के प्रदेशों को व्याप्त करती हुई अति विशिष्ट शोभा से सम्पन्न हैं । उस विजयद्वार की दोनों ओर नैषेधिकाओं में दो दो वनमालाओं की कतार हैं। ये वनमालाएँ अनेक वृक्षों और लताओं के किसलयरूप पल्लवों - कोमल पत्तों से युक्त हैं और भ्रमरों द्वारा भुज्यमान कमलों से सुशोभित और सीक हैं । ये वनमालाएँ प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं तथा अपनी उदार, मनोज्ञ और नाक तथा मन को तृप्ति देने वाली गंध से आसपास के प्रदेश को व्याप्त करती हुई अतीव अतीव शोभित होती हुई स्थित हैं। १३०. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो पगंठगा पण्णत्ता । ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाई आयामविक्खंभेणं दो जोयणाई बाहल्लेणं सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा । सिं णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयं पत्तेयं पासायवडिंसगा पण्णत्ता । ते णं पासायवडिंगा चत्तारि जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिताविव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउयविजयवेजयंती पडाग - छत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगनतलमणुलिहंतसिहरा ' जालंतररयणपंजरुम्मिलितव्व मणिकणगथ्रुभियागा वियसियसयपत्तपोंडरीय तिलक - रयणद्धचंदचित्ता णाणामणिमयदामालंकिया अंतो य बाहि य सहा तवणिज्जरुइलवालुयापत्थडगा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिनवा पडिरूवा । तेसिं णं पासायवडिं सगाणं उल्लोया पउमलया जाव सामलयाभत्तिचित्ता सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसिं णं पासायवडिंसगाणं पत्तेयं पत्तेयं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते; से जहाणामए आलिंगपुक्खरे इ वा जाव मणिहिं उवसोभिए । मणीण गंधो वण्णो फासो य नेयव्वो । सिंणं बहुसमरमणिजाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ । ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वरयणामईओ जाव पडिरूवाओ। १. 'गगनतलमभिलंघमाणसिहरा' इत्यपि पाठः ।

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