Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
गौतम ! विजयद्वार यह नाम शाश्वत है। यह पहले नहीं था ऐसा नहीं, वर्तमान में नहीं ऐसा नहीं और भविष्य में नहीं होगा - ऐसा भी नहीं, यावत् यह अवस्थित और नित्य है ।
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१३५. (१) कहिं णं भंते ! विजयस्स देवस्स विजयाणाम रायहाणी पण्णत्ता ? गोमा ! विजय दास्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अण्णम्मि जंबूद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजयाणाम रायहाणी पण्णत्ता, बारस जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयसर किंचि विसेसाहिया परिक्खेवेणं पण्णत्ता ।
साणं एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता । से णं पागारे सत्ततीसं जोयणाई अद्धजोयणं य उड्डुं उच्चत्तेणं, मूले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं मज्झे सक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं उप्पि तिणि सद्धकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मुले वित्थिपणे मज्झे संखित्ते उप्पिं तणुए बाहिं वट्टे अंतो चउरंसे गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे ।
सेणं पागारे णाणाविहपंचवण्णेहिं कविसीसएहिं उवसोभिए, तं जहा - किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं । तेणं कविसीसगा अद्धकोसं आयामेणं पंचधणुसयाइं विक्खंभेणं देसूणमद्धको सं उड्डुं उच्चत्तेणं सव्वमणिमया अच्छा जाव पडिरूवा ।
[१३५] (१) हे भगवन् ! विजयदेव की विजया नामक राजधानी कहाँ कही है ?
गौतम ! विजयद्वार के पूर्व में तिरछे असंख्य द्वीप - समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जंबूद्वीप १ नाम के द्वीप में बारह हजार योजन जाने पर विजयदेव की विजया राजधानी है जो बारह हजार योजन की लम्बी-चौड़ी है तथा सैंतीस हजार नौ सौ अड़तालीस योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है ।
वह विजया राजधानी चारों ओर से एक प्राकार ( परकोटे) से घिरी हुई है । वह प्राकार साढ़े सैंतीस योजन ऊँचा है, उसका विष्कंभ (चौड़ाई) मूल में साढ़े बारह योजन, मध्य में छह योजन एक कोस और ऊपर तीन योजन आधा कोस है; इस तरह वह मूल में विस्तृत हैं, मध्य में संक्षिप्त है और ऊपर तनु ( कम ) है । वह बाहर से गोल अन्दर से चौकोन, गाय की पूंछ के आकार का है । वह सर्व स्वर्णमय है स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है।
वह प्राकार नाना प्रकार के पांच वर्णों के कपिशीर्षकों (कंगूरों) से सुशोभित है, यथा - कृष्ण यावत् सफेद कंगूरों से। वे कंगूरे लम्बाई में आधा कोस, चौड़ाई में पांच सौ धनुष, ऊंचाई नें कुछ कम आधा कोस हैं। वे कंगूरे सर्व मणिमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं ।
१३५. ( २ ) विजयाए णं रायहाणीए एगमेगाए बाहाए पणुवीसं पणुवीसं दारसयं भवतीति मक्खायं ।
१. जम्बूद्वीप नाम के असंख्यात द्वीप हैं। सबसे आभ्यन्तर जंबूद्वीप से यहाँ मतलब नहीं है।