Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 434
________________ तृतीय प्रतिपत्ति: जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या] [३८५ ते णं दारा बावढि जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथूभियागा ईहामिय० तहेव जहा विजएदारे जाव तवाणिज्जबालुगपत्थडा सुहफासा सस्सिरीया सुरूवा पासाईया ४। तेसिं णं दाराणं उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ तहेव भाणियव्वं जाव वणमालाओ।तेसिंणंदाराणं उभओ पासिंदुहओ णिसीहियाए दो-दो पगंठगा पण्णत्ता। तेणं पगंठगा एक्कतीसंजोयणाइंकोसंचआयामविक्खंभेणं पन्नरस जोयणाई अड्ढाइज्जे कोसे बाहल्लेणं पण्णत्ता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसिं णं पगंठगाणं उप्पिं पत्तेयं पत्तेयं पासायवडिंसगा पण्णत्ता। ते णं पासायवडिंसगा एक्कतीसंजोयणाइंकोसंच उढे उच्चत्तेणं पन्नरस जोयणाई अड्डाइझे यकोसे आयामविक्खंभेणं सेसं तं चेव जाव समुग्गया णवरं बहुवयणं भाणियव्वं। विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे दारे अट्ठसयं चक्कझयाणं जाव अट्ठसयं सेयाणं चउविसाणाणं णागवरकेऊणं एवामेव सपुव्वावरेणं विजयाए रायहाणीए एगमेगे दारे असीयं असीयं केउसहस्सं भवतीति मक्खायं। विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे दारे (तेसिं च दाराणं पुरओ) सत्तरस सत्तरस भोमा पण्णत्ता। तेसिं णं भोमाणं ( भूमिभागा) उल्लोया (य) पडमलया० भत्तिचित्ता। तेसिंणंभोमाणं बहुमज्झदेसभाए जे ते नवमनवमा भोमा तेसिंणं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं सीहासणा पण्णत्ता। सीहासणवण्णओ जाव दामा जहा हेट्ठा। एत्थ णं अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं पत्तेयं भद्दासणा पण्णत्ता।तेसिंणं दाराणं उवरिमागारा सोलसविहेहिं उवसोभिया। तंचेव जाव छत्ताइछत्ता। एवामेव पुव्वावरेण विजयाए रायहाणीए पंचदारसया भवंतीत मक्खाया। [१३५] (२) विजया राजधानी की एक-एक बाहा (दिशा) में एक सौ पच्चीस, एकसौ पच्चीस द्वार कहे गये हैं। ऐसा मैने और अन्य तीर्थंकरों ने कहा है। ये द्वार साढ़े बासठ योजन के ऊँचे हैं, इनकी चौड़ाई इकतीस योजन और एक कोस है और इतना ही इनका प्रवेश है। ये द्वार श्वेत वर्ण के हैं, श्रेष्ठ स्वर्ण की स्तूपिका (शिखर) है, उन पर ईहामृग आदि के चित्र बने हैं-इत्यादि वर्णन विजयद्वार की तरह कहना चाहिए यावत् उनके प्रस्तर (आंगन) में स्वर्णमय बालुका बिछी हुई है। उनका स्पर्श शुभ और सुखद है, वे शोभायुक्त सुन्दर प्रासादीय दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप हैं। उन द्वारों के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो-दो चन्दन-कलश की परिपाटी कही गई हैं-इत्यादि वनमालाओं तक का वर्णन विजयद्वार के समान कहना चाहिए। उन द्वारों के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो-दो प्रकण्ठक (पीठविशेष) कहे गये है। वे प्रकंठक इकतीस योजन और एक कोस लम्बाई-चौड़ाई वाले हैं, उनकी मोटाई पन्द्रह योजन और ढ़ाई कोस है, वे सर्व वज्रमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। उन प्रकण्ठकों के ऊपर प्रत्येक पर अलग-अलग प्रासादावतंसक कहे गये हैं। वे प्रासादावतंसक

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