Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 438
________________ तृतीय प्रतिपत्ति : जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या] [३८९ कोसं य आयाम-विक्खंभेणं अब्भग्गयमसियप्पहसिए तहेव। तस्स णं पासायवडिंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणिफासे उल्लोए। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णंएगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता।साच एगंजोयणमायामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा सण्हा। ___ तीसेणं मणिपेढियाए उवरि एगे महं सीहासणे पण्णत्ते, एवं सीहासणवण्णओ सपरिवारो। तस्स णं पासायवडिंसगस्स उप्पिं बहवे अट्ठट्ठमंगलगा झया, छत्ताइछत्ता। से णं पासायवडिंसए अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडिसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, ते णं पासायवडिंसगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं य उड्ढे उच्चत्तेणं अद्धसोलसजोयणाइंअद्धकोसंयआयाम-विक्खंभेणंअब्भुग्गय तहेव तेसिंणंपासायवडिंसगाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया। तेसिं णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमझदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं सीहासणं पण्णत्तं, वण्णओ।तेसिं परिवारभूया भद्दासणा पण्णत्ता। तेसिं णं अट्ठमंगलगा, झया, छत्ताइछत्ता। . ते णं पासायवडिंसगा अण्णेहिं चउहिं चाहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता।तेणं पासायवडिंसगाअद्धसोलसजोयणाइंअद्धकोसंयउटुंउच्चत्तेणं देसूणाई अट्ठजोयणाई आयाम-विक्खंभेणं अब्भुग्गय० तहेव। तेसिं णं पासायवडेंसगाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया।तेसिंणं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणंबहुमज्झभाए पत्तेयं पत्तेयं पउमासणा पण्णत्ता।तेसिंणं पासायवडिंसगाणं उप्पिं बहवे अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता। तेणं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता।ते णं पासायवडेंसगा देसूणाई अट्ठजोयणाई उ8 उच्चत्तेणं देसूणाई चत्तारि जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं अब्भुग्गय० तहेव भूमिभागा उल्लोया। भद्दासणाई उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता। तेणं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं तदद्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडिंसगा देसूणाइं चत्तारि जोयणाई उर्दू उच्चत्तेणं देसूणाई दो जोयणाई आयाम-विक्खंभेणं अब्भुग्गयमुस्सिय० भूमिभागा उल्लोया। पउमासणाई उवरि अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइछत्ता। [१३६] (२) विजय राजधानी के अन्दर बहुसमरमणीय भूमिभाग कहा गया है यावत् वह पांच वर्णों की मणियों से शोभित है। तृण-शब्दरहित मणियों का स्पर्श यावत् देव-देवियां वहाँ उठती-बैठती हैं यावत् पुण्य कर्मों का फल भोगती हुई विचरती हैं। उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के मध्य में एक बड़ा उपकारिकालयन १ -विश्रामस्थल १. वृत्तिकार में 'राजधानी के प्रासादावतंसकादि की पीठिका' ऐसा अर्थ करते हुए लिखा है कि अन्यत्र इसे उपकार्योपकारका कहा है। कहा है-'गृहस्थानं स्मृतं राज्ञामुपकार्योपकारका' इति ।

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