Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 430
________________ तृतीय प्रतिपत्ति: जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या ] नाना मणिरत्नों से जटित दण्ड वाले हैं । (जिनके दण्ड नाना प्रकार की मणियों, स्वर्ण, रत्नों से जटित हैं, विमल हैं, बहुमूल्य स्वर्ण के समान उज्ज्वल एवं चित्रित हैं, चमकीले हैं) वे चामर शंख, अंकरत्न कुंद (मोगरे के फूल) दगरज (जलकण) अमृत (क्षीरोदधि) के मथित फेनपुंज के समान श्वेत हैं, सूक्ष्म और रजत के लम्बे-लम्बे बाल वाले हैं, सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं। [३८१ उन तोरणों के आगे दो-दो तैलसमुद्गक ' ( आधारविशेष) कोष्टसमुद्गक, पत्रसमुद्गक, चोयसमुद्गक, तगरसमुद्गक, इलायचीसमुद्गक, हरितालसमुद्गक, हिंगुलुसमुद्गक, मनःशिलासमुद्गक और अंजनसमुद्गक हैं। (सर्व सुगंधित द्रव्य हैं। इनके रखने के आधार को समुद्गक कहते हैं ।) ये सर्व समुद्गक सर्वरत्नमय हैं स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। १३२. विजए णं दारे अट्ठसयं चक्कज्झयाणं अट्ठसयं मिगज्झयाणं अट्ठसयं गरुडज्झयाणं (अट्ठसयं विगज्झयाणं) अट्ठसयं रुरुयज्झयाणं अट्ठसयं छत्तज्झयाणं अट्ठसयं पिच्छज्झयाणं अट्ठसयं सउणिज्झयाणं अट्ठसयं सीहज्झयाणं अट्ठसयं उसभज्झयाणं अट्ठसयं सेयाणं चउविसाणाणं णागवरकेऊणं एवामेव सपुव्वावरेणं विजयदारे य असीयं केउसहस्सं भवतीतिमक्खायं । विजए णं दारे णव भोमा पण्णत्ता । तेसिं णं भोमाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पत्ता जाव मणीणं फासो । तेसिं णं भोमाणं उप्पिं उल्लोया पउमलया जाव सामलताभत्तिचित्ता जाव सव्वतवणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा । संभमाणं बहुमज्झदेसभाए जे से पंचमे भोमे तस्स णं भोमस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते। सीहासणवण्णओ विजयदूसे जाव अंकुसे जाव दामा चिट्ठति । तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउन्हं सामाणियसहस्साणं चत्तारि भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । तस्स णं सीहासणस्स पुरच्छिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं चत्तारि भद्दासणा पण्णत्ता । तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपुरत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स अब्धिंतरियाए परिसाए अट्ठण्हं देवसाहस्सीणं अट्ठण्हं भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । तस्स णं सीहासणस्स दाहिणेणं विजयस्स देवस्स मज्झिमाए परिसाए दसण्हं देवसाहस्सीणं दस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । तस्स णं सीहासणस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स बाहिरियाए बारसण्हं देवसाहस्सीणं बारसभद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ । तस्स णं सीहासणस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स सत्तण्हं अणियाहिवईणं सत्त भद्दासणा पण्णत्ता । तस्स णं सीहासणस्स पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं एत्थ णं विजयस्स देवस्स सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीणं सोलस भद्दासणसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, १. 'तैलसमुद्गकौ सुगंधिततैलाधारविशेषौ ' इति वृत्तिः । २. तेल्लो कोठसमुग्गा पत्ते चोए य तगर एला य । हरियाले हिंगुलए मणोसिला अंजणसमग्गो ।' संग्रहणी गाथा ।

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