Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति : वनखण्ड-वर्णन]
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१२६.[३] तत्थ णं जे ते णीलगा तणा य मणी य तेसिं णं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-से जहानामए भिंगे इवा, भिंगपत्ते इ वा, चासे इ वा, चासपिच्छे इ वा, सुए इ वा, सुयपिच्छे इ वा, णीली इवा, णीलीभेए इ वा, णीलीगुलिया इ वा, सामाए इ वा, उच्चतर इवा, वणराई इ वा, हलधरवसणे इ वा, मोरग्गीवा इ वा, पारेवयगीवा इवा, अयसिकुसुमे इवा, अंजणकेसिगाकुसुमे इ वा, णीलुप्पले इ वा, णीलासोए इ वा, णीलकणवीरे इ वा, णीलबंधुजीवए इवा, भवे एयारूवे सिया?
णो इणठे समढें । तेसिंणंणीलगाणं तणाणं मणीण य एत्तो इट्ठतराए चेव कंततराए चेव जाव वण्णेणं पण्णत्ते।
[१२६] (३) उन तृणों और मणियों में जो नीली मणियां और नीले तृण हैं, उनका वर्ण इस प्रकार का है-जैसे नीला भंग (भिंगोडी-पंखवाला लघु जन्तु-नीला भंवरा) हो, नीले भ्रंग का पंख हो, चास (पक्षिविशेष) हो, चास का पंख हो, नीले वर्ण का शुक (तोता) हो, शुक का पंख हो, नील हो, नीलखण्ड हो, नील की गुटिका हो, श्यामाक (धान्य विशेष) हो, नीला दंतराग हो, नीली वनराजि हो, बलभद्र का नीला वस्त्र हो, मयूर की ग्रीवा हो, कबूतर की ग्रीवा हो, अलसी का फूल हो, अञ्जनकेशिका वनस्पति का फूल हो, नीलकमल हो, नीला अशोक हो, नीला कनेर हो, नीला बन्धुजीवक हो, भगवन् ! क्या ऐसा नीला उनका वर्ण होता है ?
गौतम ! यह बात नहीं है। इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर उन नीले तृणमणियों का वर्ण होता है।
१२६.[४] तत्थ णं जे ते लोहितगा तणा य मणी य तेसिंणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-से जहानामए ससकरुहिरे इवा, उरभरुहिरे इवा, णररुहिरे इवा, वराहरुहिरे इवा, महिसरुहिरे इवा, बालिंदगोवए इवा, बालदिवागरे इवा, संझब्भरागे इवा, गुंजद्धरागे इवा, जातिहिंगुलुए इवा, सिलप्पवाले इ वा, पवालंकुरे इ वा, लोहितक्खमणी इवा, लक्खारसए इवा, किमिरागेइवा, रत्तकंबले इवा, चीणपिट्ठरासी इवा, जासुयणकुसुमे इवा, किंसुअकुसुमे इवा, पारिजायकुसुमे इ वा, रत्तुप्पले इ वा, रत्तासोगे इ वा, रत्तकणयारे इवा, रत्तबंधुजीवे इवा, भवे एयारूवे सिया? _____ नो तिणढे समढे । तेसिं णं लोहियगाणं तणाण य मणीण य एत्तो इट्ठयराए चेव जाव वण्णे णं पण्णत्ते।
__ [१२६] (४) उन तृणों और मणियों में जो लाल वर्ण के तृण और मणियां हैं, उनका वर्ण इस प्रकार का कहा गया है-जैसे खरगोश का रुधिर हो, भेड़ का खून हो, मनुष्य का रक्त हो, सूअर का रुधिर हो, भैंस का रुधिर हो, सद्य:जात इन्द्रगोप (लाल वर्ण का कीड़ा) हो, उदीयमान सूर्य हो, संध्याराग हो, गुंजा का अर्धभाग हो, उत्तम जाति का हिंगुल हो, शिलाप्रवाल (मूंगा) हो, प्रवालांकुर (नवीन प्रवाल का किशलय) हो, लोहिताक्ष मणि हो, लाख का रस हो, कृमिराग हो, लाल कंबल हो, चीनधान्य का पीसा