Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 420
________________ उत्तीय प्रतिपत्ति नम्बबीप के द्वारा की संख्या] [३७१ पधागा, आबद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिहाणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा महया महया महिवकुंभ समाणा पण्णत्ता समणाउसो! विजयस्स गंदारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो नागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ।तेणंणागवंतगामुत्ताजालंतरुसितहेमजालगवक्खजालखिंखिणिघंटाजालपरिक्खित्ता अब्भुग्गया अभिनिसिडा तिरिय सुसंपग्गहिता अहे पण्णगद्धरूवा, पण्णगद्धसंठाणसंठिया सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया महया गयदंतसमाणा पण्णत्ता समणाउसो ! तेसुणंणागदंतएसुबहवे किण्हसुत्तबद्धवग्धारियमल्लदामकलावा जाव सुक्किलसुत्तबद्धवग्यारियमल्लदामकलावा। ते णं दामा तवणिज्जलंबूसगा सुवण्णपतरकमंडिया णाणामणिरयणविविहहारद्धहारोसोभियसमुदया जाव सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिटुंति। ___ तेसिं णं णागदंताणं उवरि अण्णओ दो दो नागदंतपरिवाडीओ पण्णत्ताओ। ते णं नागदंतणा मुत्ताजालंतरूसिया तहेव जाव समणाउसो ! - तेसु णं नागदंतएसु बहवे रययामया सिक्कया पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ।ताओणंधूवघडीओ कालागुरुपवरकुंदरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणंमणुण्णणं घाणमणणिव्वुइकरेणं गंधेणंतप्पएसे सव्वओ समंता आपूरेमाणीओ आपूरेमणीओ अईव अईव सिरीए उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिटुंति। _ [१२९] (२) उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाएं हैं-बैठने के स्थान हैं (एक-एक दोनों तरफ हैं)। उन दो नैषेधिकाओं में दो -दो चन्दन के कलशों की पंक्तियां कही गई है। वे चन्दन के कलश श्रेष्ठ कमलों पर प्रतिष्ठित हैं, सुगन्धित और श्रेष्ठ जल से भरे हुए हैं, उन पर चन्दन का लेप किया हुआ है। उनके कंठों में मौली (लच्छा) बंधी हुई है, पद्मकमलों का उन पर ढक्कन है, वे सर्वरत्नों के बने हुए हैं, स्वच्छ हैं, श्लक्ष्ण (मृदु पुद्गलों से निर्मित) हैं। यावत् बहुत सुन्दर हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! वे कलश बड़ेबड़े महेन्द्रकुम्भ (महाकलश) के समान हैं। उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकाओं में दो-दो नागदंतों (खूटियों) की पंक्तियां हैं। वे नागदन्त मुक्ताजालों के अन्दर लटकती हुई स्वर्ण की मालाओं और गवाक्ष की आकृति की रत्नमालाओं और छोटी-छोटी घण्टिकाओं (धुंघरुओं) से युक्त हैं, आगे के भाग में ये कुछ ऊँचाई लिये हुई हैं। ऊपर के भाग में आगे निकली हुई हैं और अच्छी तरह ठुकी हुई हैं, सर्प के निचले आधे भाग की तरह उनका रूप है अर्थात् अति सरल और दीर्घ है इसलिए सर्प के निचले आधे भाग की आकृति वाला हैं, सर्वथा वज्ररत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, यावत् प्रतिरूप हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! वे नागदन्त बड़े बड़े गजदन्त (हाथी के दांत) के समामन कहे गये हैं।

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