Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
उन तृणों और मणियों का शब्द है ?
गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
भगवन् ! जैसे किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गंधर्व-जो भद्रशालवन, नन्दनवन, सोमनसवन और पंडकवन में स्थित हों, जो हिमवान् पर्वत, मलयपर्वत या मेरुपर्वत की गुफा में बैठे हों, एक स्थान पर एकत्रित हुए हों, एक दूसरे के सन्मुख बैठे हों, परस्पर रगड़ से रहित सुखपूर्वक आसीन हों, समस्थान पर स्थित हों, जो प्रमुदित और क्रीड़ा में मग्न हों, गीत में जिनकी रति हो और गन्धर्व नाट्य आदि करने से जिनका मन हर्षित हो रहा हो, उन गन्धर्वादि के गद्य, पद्य, कथ्य, पद्बद्ध (एकाक्षरादिरूप), पादबद्ध(श्लोक का चतुर्भाग), उत्क्षिप्त (प्रथम आरम्भ किया हुआ), प्रवर्तक (प्रथम आरम्भ से ऊपर आक्षेप पूर्वक होने वाला), मंदाक (मध्यभाग में मन्द-मन्द रूप से स्वरित) इन आठ प्रकार के गेय को, रुचिकर, अन्त वाले गेय को, सात स्वरों से युक्त गेय को, आठ रसों से युक्त गेय को, छह दोषों से रहित, ग्यारह अलंकारों से युक्त, आठ गुणों से युक्त, बांसुरी की सुरीली आवाज से गाये गये गेय को, राग से अनुरक्त, उर-कण्ठ-शिर ऐसे त्रिस्थान शुद्ध गेय को, मधुर, सम, सुललित, एक तरफ बांसुरी और दूसरी तरफ तन्त्री (वीणा) बजाने पर दोनों में मेल के साथ गाया गया गेय, तालसंप्रयुक्त, लयसंप्रयुक्त, ग्रहसंप्रयुक्त (बांसुरी तन्त्री आदि के पूर्वगृहीतस्वर के अनुसार गाया जाने वाला), मनोहर, मृदु और रिभित (तन्त्री आदि के स्वर से मेल खाते हुए) पद संचार वाले, श्रोताओं को आनन्द देने वाले, अंगों के सुन्दर झुकाव वाले, श्रेष्ठ सुन्दर ऐसे दिव्य गीतों के गाने वाले उन किन्नर आदि के मुख से जो शब्द निकलते हैं, वैसा उन तृणों और मणियों का शब्द होता है क्या ?
हां गौतम ! उन तृणों और मणियों के कम्पन से होने वाला शब्द इस प्रकार का होता है।
विवेचन-उस वनखण्ड के भूमिभाग में जो तृण और मणियां हैं, उनके वायु द्वारा कम्पित और प्रेरित होने पर जैसा मधुर स्वर निकलता है उसका वर्णन इस सूत्रखण्ड में किया गया है। श्री गौतम स्वामी ने उस स्वर की उपमा के लिए तीन उपमानों का उल्लेख किया है। पहला उपमान है-कोई पालखी (शिबिका या जम्पान) या संग्राम रथ जिसमें विविधि प्रकार के शस्त्रास्त्र सजे हुए हैं, जिसके चक्रों पर लोहे की पट्टियां जड़ी हुई हों, जो श्रेष्ठ घोड़ों और सारथी से युक्त हो, जो छत्र-ध्वजा से युक्त हो, जो दोनों ओर बड़े-बड़े घन्टों से युक्त हो, जिसमें नन्दिघोष (बारह प्रकार के वाद्यों का निनाद) हो रहा हो-ऐसा रथ या पालखी जब राजांगण में, अन्तःपुर में या मणियों से जड़े हुए आंगन में वेग से चलता है तब जो शब्द होता है क्या वैसा शब्द उन तृणों और मणियों का है ? भगवान् ने कहा-नहीं। इससे भी अधिक इष्ट, कान्त,प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर वह शब्द होता है।
इसके पश्चात् श्री गौतमस्वामी ने दूसरे उपमान का उल्लेख किया। वह इस प्रकार हैं-हे भगवन्! प्रात:काल अथवा सन्ध्या के समय वैतालिका (मंगलपाठिका) वीणा (जो ताल के अभाव में भी बजाई जाती है-जब गान्धार स्वर की उत्तरमन्दा नाम की सप्तमी मूर्छना से युक्त होती है जब उस वीणा का कुशलवादक उस वीणा को अपनी गोद में अच्छे ढंग से स्थापित कर चन्दन के सार से निर्मित वादन-दण्ड से बजाता है तब उस वीणा से जो कान और मन को तृप्त करने वाला शब्द निकलता है क्या वैसा उन तृणों मणियों