Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 413
________________ ३६४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र छोटी चौकीन वावडियाँ हैं, गोल-गोल अथवा कमल वाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह-जगह नहरों वाली दीर्घिकाएँ हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएँ हैं, जगह-जगह सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियां (जिन तालाबों में कुएं का पानी नालियों द्वारा लाया जाता है) और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं, मृदु पुद्गलों से निर्मित हैं। इनके तीर सम हैं, इनके किनारे चांदी के बने हैं, किनारे पर लगे पाषाण वज्रमय हैं। इनका तलभाग तपनीय (स्वर्ण) का बना हुआ है। इनके तटवर्ती अति उन्नत प्रदेश वैडूर्यमणि एवं स्फटिक के बने हैं। मक्खन के समान इनके सुकोमल तल हैं। स्वर्ण और ' शुद्ध चांदी की रेत है। ये सब जलाशय सुखपूर्वक प्रवेश और निष्क्रमण योग्य हैं। नाना प्रकार की मणियों से इनके घाट मजबूत बने हुए हैं। कुएं और बावडियां चौकोन हैं। इनका वप्र-जलस्थान क्रमशः नीचे-नीचे गहरा होता है और उनका जल अगाध और शीतल है। इनमें जो पद्मिनी के पत्र, कन्द और पद्मनाल हैं वे जल से ढंके हुए हैं। उनमें बहुत से उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र फूले रहते हैं और पराग से सम्पन्न हैं, ये सब कमल भ्रमरों से परिभुज्यमान हैं अर्थात् भंवरे उनका रसपान करते रहते हैं। ये सब जलाशय स्वच्छ और निर्मल जल से परिपूर्ण हैं। परिहत्थ २ (बहुत से) मत्स्य और कच्छप इधर-उधर घूमते रहते हैं, अनेक पक्षियों के जोड़े भी इधर-उधर भ्रमण करते रहते हैं। इन जलाशयों में से प्रत्येक जलाशय वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है और प्रत्येक जलाशय पद्मवरवेदिका से युक्त है। इन जलाशयों में से कितनेक का पानी आसव जैसे स्वाद वाला है, किन्हीं का वारुणसमुद्र के जल जैसा है, किन्ही का जल दूध जैसे स्वाद वाला हैं, किन्हीं का जल घी जैसे स्वाद वाला है, किन्हीं का जल इक्षुरस जैसा है, किन्ही के जल का स्वाद अमृतरस जैसा है और किन्ही का जल स्वभावतः उदकरस जैसा है। ये सब जलाशय प्रसन्नता पैदा करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं। १२७.(२) तासिंणं खुड्डियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं जाव बहवे तिसोवाणपडिरूवगापण्णत्ता।तेसिंणं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवेवण्णावासे पण्णत्ते,तं जहा-वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियमया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलगा वइरामया संधी लोहितक्खमईओ सुईओ णाणामणिमया अवलंबणा अवलंबणबाहाओ। तेसिं णं तिसोपाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता। ते णं तोरणा णाणामणिमयखंभेसु उवणिविट्ठसण्णिविट्ठा विविहमुत्तरोवइया विविहतारारूवोवचियाईहामियउसभ-सुग-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलयपउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगताभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव आच्चिसहस्समालणीयाभिसमाणाभिब्भिसमाणा चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तेसिंणंतोरणाणं उप्पिं वहवे अट्ठमंगलगा पण्णत्ता, सोत्थिय-सिरिवच्छ-णंदियावत्त १. वृत्ति के अनुसार 'सुज्झ' का अर्थ रजतविशेष है। २. 'परिहत्थ' अर्थात् बहुत सारे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498