Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 416
________________ ततीय प्रतिपत्ति: वनखण्ड की बावड़ियों आदि का वर्णन] [३६७ तेसु णं आलिघरएसु जाव आयंसघरएसु बहूइं हंसासणाइं जाव दिसासोवत्थियासणाई सव्वरयणामयाइं जाव पडिरूवाई। तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे जाइमंडवगा जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा णवमालियमंडवगा वासंतीमंडवगा दधिवासुयामंडवगा सूरिल्लिमंडवगा, तंबोलीमंडवगा मुद्दियामंडवगाणागलयामंडवगा अतिमुत्तमंडवगा अप्पोयामंडवगा मालुयामंडवगा सामलयामंडवगा णिच्चं कुसुमिया जाय पडिरूवा। तेसुणं जातिमंडवएसु (जाव सामलयामंडवएसु) बहवे पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता, तं जहा-हंसासणसंठिया गरुलासणसंठिया उण्णयासणसंठिया पणयासणसंठिया दीहासणसंठिया भद्दासणसंठिया पक्खासणसंठिया मगरासणसंठिया उसभासणसंठिया, सीहासणसंठिया पउमासणसंठिया दिसासोत्थियासणसंठिया पण्णत्ता। तत्थ बहवे वरसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया पण्णत्ता समणाउसो ! आइण्णग-रूय-बूर-णवणीयतूलफासा मउया सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। ___ तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति णिसीदंति तुयलैंति रमंति ललंति कीलंति मोहंति पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरिक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। __ [१२७] (४) उस वनखण्ड के उन-उन स्थानों और भागों में बहुत से आलिघर (आली नामक वनस्पतिप्रधान घर) हैं, मालिघर (माली नामक वनस्पतिप्रधान घर) हैं, कदलीघर हैं, लताघर हैं, ठहरने के घर (धर्मशालावत्) हैं, नाटकघर हैं, स्नानघर, प्रसाधन (शृंगारघर), गर्भगृह (भौयरा), मोहनघर (वासभवनरतिक्रीडार्थ घर) हैं, शालागृह (पट्टशाला), जालिप्रधानगृह, फूलप्रधानगृह, चित्रप्रधानगृह, गन्धर्वगृह (गीतनृत्य के अभ्यास योग्य घर) और आदर्शघर (काचप्रधान गृह) हैं। ये सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् बहुत सुन्दर उन आलिघरों यावत् आदर्शघरों में बहुत से हंसासन यावत् दिशास्वस्तिकासन रखे हुए हैं, जो सर्वरत्नमय हैं यावत् सुन्दर हैं. उस वनखण्ड के उन उन स्थानों और भागों में बहुत से जाई (चमेली के फूलों से लदे हुए मण्डप (कुंज) हैं, जूही के मण्डप हैं, मल्लिका के मण्डप हैं, नवमालिका के मण्डप हैं, वासन्तीलता के मण्डप हैं, दधिवासुका नामक वनस्पति के मण्डप हैं, सूरिल्ली-वनस्पति के मण्डप हैं, तांबूली-नागवल्ली के मण्डप है, मुद्रिका-द्राक्षा के मण्डप हैं, नागलतामण्डप, अतिमुक्तकमण्डप, अप्फोया वनस्पति विशेष के मण्डप, लुकामण्डप, (एक गुठली वाले फलों के वृक्ष) और श्यामलतामण्डप हैं। ' ये नित्य कुसुमित रहते हैं, कुलित रहते हैं, पल्लवित रहते हैं यावत् ये सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। वृत्ति में 'सामलयामंडवा' पाठ नहीं है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498