Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति: जम्बूद्वीप वर्णन ]
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में भी नदी, तालाब तथा जलाशयों में तरंगों का सद्भाव है ही । ये द्वीप समूह नाना - जातियों के कमलों से शोभायमान हैं। सामान्य कमल को उत्पल कहते हैं । सूर्यविकासी कमल को पद्म तथा चन्द्रविकासी कमल को कुमुद, ईषद् रक्त कमल को नलिन कहते हैं । सुभग और सौगन्धिक भी कमल की जातियां हैं। पुण्डरीक और महापुण्डरीक कमल श्वेत वर्ण के होते हैं । सौ पत्तों वाला कमल शतपत्र है और हजार पत्तों वाला कमल सहस्रपत्र है। विकसित केसरों (परागों) से वे द्वीप समुद्र अत्यन्त शोभनीय हैं। ये प्रत्येक द्वीप और समुद्र एक पद्मवरवेदिका से और एक वनखण्ड से परिमण्डित हैं ( घिरे हुए हैं) । इस तिर्यक्लोक में एक द्वीप और एक समुद्र के क्रम से असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। सबसे अन्त में स्वयंभूरमण समुद्र है। इस प्रकार अवस्थिति, संख्या, प्रमाण और संस्थान का कथन किया। आकार भाव प्रत्यवतार का कथन अगले सूत्र में किया गया है। जम्बूद्वीप वर्णन
१२४. तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे णामं दीवे दीवसमुद्दाणं अब्भितरिए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए वट्टे, रहचक्कवालसंठाणसंठिए वट्टे, पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए वट्टे, पडिपुन्नचंदसंठाणसंठिए एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खभेणं तिणि जोयणसहस्साई सोलस य सहस्साइं दोण्णि ये सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई अर्द्धगुलकं च किं चि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।
सेणं एक्काए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । सा णं जगती अट्ठ जोयणाई उड्ढ उच्चत्तेणं, मूले वारस जोयणाइं विक्खंभेणं मज्झे अट्ठजोयणाइं विक्खंभेणं उप्पिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं, मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पे तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिकक्कंडच्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । साणं जगती एक्केणं जालकडएणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं जालकडए णं अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसया विक्खंभेणं सव्वरयणामए अच्छे सण्हे लहे जाव पडिरूवे ।
[१२४] उन द्वीप समुद्रों में यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सबसे आभ्यन्तर ( भीतर का) है, सबसे छोटा हैं, गोलाकार है, तेल में तले हुए पूए के आकार का गोल है, रथ के पहिये के समान गोल है, कमल की कर्णिका के आकार का गोल है, पूनम के चांद के समान गोल है। यह एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा है । तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस (३, १६, २२७) योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष, साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला है।
यह जम्बूद्वीप एक जगती से चारों ओर से घिरा हुआ है। वह जगती आठ योजन ऊंची है। उसका विस्तार मूल में बारह योजन, मध्य में आठ योजन और ऊपर चार योजन है। मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतली है । वह गाय की पूंछ के आकार की है। वह पूरी तरह वज्ररत्न की बनी हुई है। वह स्फटिक की तरह स्वच्छ है, चिकनी है, घिसी हुई होने से मृदु है। वह घिसी हुई, मंजी हुई (पालिश की हुई) रजरहित,