Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति: देववर्णन]
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की सूचना दी गई है। प्रज्ञापना में वे भेद इस प्रकार कहे हैं
भवनपति के १० भेद हैं-१. असुरकुमार, २. नागकुमार, ३. सुपर्णकुमार, ४. विद्युत्कुमार, ५. अग्निकुमार, ६.द्वीपकुमार, ७. उदधिकुमार, ८. दिशाकुमार, ९. पवनकुमार, १०. स्तनितकुमार। इन दस के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से २० भेद हुए।
वानव्यन्तर के ८ भेद हैं- १. किन्नर, २. किंपुरुष, ३. महोरग, ४. गंधर्व, ५. यक्ष, ६. राक्षस, ७. भूत, ८. पिशाच। इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद से १६ भेद हुए।
ज्योतिष्क के पांच प्रकार हैं-१. चन्द्र, २. सूर्य, ३. ग्रह, ४. नक्षत्र और ५. तारे। इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
वैमानिक दो प्रकार के हैं-१. कल्पोपपन्न और २. कल्पातीत। कल्पोपन्न १२ प्रकार के हैं-१. सौधर्म, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्मलोक, ६. लान्तक,७. महाशुक्र, ८. सहस्रार, ९. आनत, १०. प्राणत, ११. आरण और.१२. अच्युत।
. कल्पातीत दो प्रकार के हैं-ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक।ग्रैवेयक के ९ भेद हैं-१.अधस्तानाधस्तन, २.अधस्तनमध्यम, ३. अधस्तनउपरितन, ४. मध्यमअधस्तन, ५. मध्यम-मध्यम, ६. मध्यमोपरितन,७. उपरिमअधस्तन, ८. उपरिम-मध्यम और ९. उपरितनोपरितन।
अनुत्तरोपपातिक पांच प्रकार के हैं-१.विजय, २. वैजयंत, ३. जयन्त, ४. अपराजित और सर्वाथसिद्ध। उपर्युक्त सब वैमानिकों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के रूप में दो-दो भेद हैं।
उक्त रीति से भेदकथन के पश्चात् भवनवासी देवों के भवनों और उनके निवासों को लेकर प्रश्न किये गये हैं। इसके उत्तर में कहा गया है कि हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं उस रत्नप्रभापृथ्वी का बाहल्य (मोटाई) एक लाख अस्सी हजार योजन का है। उसके एक हजार योजन के ऊपरी भाग को और एक हजार योजन के अघोवर्ती भाग को छोड़कर एक लाख अठहत्तर हजार योजन जितने भाग में भवनवासी देवों के ७ करोड़ और ७२ लाख भवनावास हैं। दस प्रकार के भवनवासी देवों के भवनावासों की संख्या अलग-अलग इस प्रकार है
१. असुरकुमार के ६४ लाख २. नागकुमार के ८४ लाख ३. सुपर्णकुमार के ७२ लाख ४. विद्युत्कुमार के ७६ लाख ५. अग्निकुमार के ७६ लाख ६. द्वीपकुमार के ७६ लाख ७. उदधिकुमार के ७६ लाख