Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
ज्ञानद्वार-ये ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं वे नियम से मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी हैं। जो अज्ञानी हैं वे मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी होते हैं। भावार्थ यह समझना चाहिए कि जो नारक असंज्ञी हैं वे अपर्याप्त अवस्था में दो अज्ञान वाले और पर्याप्त अवस्था में तीन अज्ञान वाले होते हैं। संज्ञी नारक दोनों ही अवस्था में तीन अज्ञान वाले होते हैं। असंज्ञी से उत्पद्यमान नारकों में अपर्याप्त अवस्था में बोध की मन्दता होने से अव्यक्त अवधि भी नहीं होता।
योगद्वार-नारकों में मनोयोग, वाग्योग और काययोग, तीन योग होते हैं। उपयोग-नारक साकार और अनाकार दोनों उपयोगवाले हैं।
आहारद्वार-नारक जीव लोक के निष्कुट (किनारे) में नहीं होते मध्य में होते हैं अत: उनके व्याघात नहीं होता। अतः छहों दिशाओं के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं और प्रायः करके अशुभ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों का ग्रहण करते हैं।
उपपातद्वार-नारक जीव असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों को छोड़कर शेष पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। शेष जीवस्थानों से नहीं।
स्थितिद्वार-नारकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम है। जघन्य स्थिति प्रथम नरक की अपेक्षा और उत्कृष्ट स्थिति सातवीं नरक की अपेक्षा से समझनी चाहिए।
समवहतद्वार-नारक जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं।
उद्वर्तनाद्वार-नारक पर्याय से निकल कर नारक जीव असंख्यात वर्षायु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों को छोड़कर संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । संमूर्छिम मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते।
गति-अगतिद्वार-नारक जीव मरकर तिर्यंचों और मनुष्यों में ही जाते हैं, इसलिए दो गति वाले और तिर्यंचों मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, इसलिए दो आगति वाले हैं।
हे आयुष्मन् श्रमण! ये नारक जीव प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं।
यह नैरयिकों का वर्णन हुआ। तिर्यक् पंचेन्द्रियों का वर्णन
३३. से किं ते पंचेंदियतिरिक्खजोणिया ? पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संमुच्छिम पंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गब्भवक्कंतिय पंचेंदियतिरिक्खजोणिया य । [३३] पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कौन हैं ?