Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
जबकि विशुद्धलेश्या वाला पदार्थों को सही रूप में जानता है और देखता है। सम्यग्-मिथ्याक्रिया का एक साथ न होना
१०४.अण्णउत्थियाणंभंते ! एवमाइक्खंति एवं भासेंति, एवं पण्णवेंति एवं परूवेंतिएवं खलु एगेजीवे एगेणंसमएणं दो किरियाओ पकरेइ, तंजहा-सम्मत्तकिरियंचमिच्छत्तकिरियं च। जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ। सम्मत्तकिरियापकरणताए मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, मिच्छत्तकिरियापकरणताए सम्मत्तकिरियंपकरेइ एवं खलुएगेजीवे एगेणं समएणंदो किरियाओ पकरेइ, तं जहा-सम्मत्तकिरियं च मिच्छत्तकिरियं च। से कहमेयं भंते ! एवं?
गोयमा !जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति, एवं भासेंति, एवं पण्णवेंति एवं परूवेंति एवं खलु एगेजीवे एगेणं समएणंदो किरियाओ पकरेइ तहेव जावसम्मत्तकिरियंचमिच्छत्तकिरियं च, जे ते एवमाहंसु तं णं मिच्छा; अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि जाव परूवेमि
एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेई, तं जहा-सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा। जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइनो तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ।तं चेव जं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ नो तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ। सम्मत्तकिरियापकरणयाए नो मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, मिच्छत्तकिरियापकरणयाए नो सम्मत्तकिरियं पकरेइ। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा-सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा।
सेत्तं तिरिक्खजोणिय-उद्देसओ बीओ समत्तो।
[१०४] हे भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार बोलते हैं, इस प्रकार प्रज्ञापना करते हैं, इस प्रकार प्ररूपणा करते है कि 'एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, यथा सम्यक्रिया
और मिथ्याक्रिया। जिस समय सम्यक्रिया करता है उसी समय मिथ्याक्रिया भी करता है, और जिस समय मिथ्याक्रिया करता है, उस समय सम्यक्क्रिया भी करता है। सम्यक्रिया करते हुए (उसके साथ ही) मिथ्यक्रिया भी करता है और मिथ्याक्रिया करने के साथ ही सम्यक्रिया भी करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, यथा-सम्यक्रिया और मिथ्याक्रिया।'
हे भगवन् ! उनका यह कथन कैसा है ?
हे गौतम ! जो वे अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, ऐसा बोलते हैं, ऐसी प्रज्ञापना करते हैं और ऐसी प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है-सम्यक्क्रिया और मिथ्याक्रिया। जो अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कथन करते हैं।
गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि एक जीव एक समय में एक ही किया करता हैं, यथा सम्यक्क्रिया अथवा मिथ्याक्रिया। जिस समय सम्यक्रिया करता है उस समय मिथ्याक्रिया नहीं करता और जिस समय मिथ्याक्रिया करता है उस समय सम्यक्क्रिया नहीं करता हैं और मिथ्याक्रिया