Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति: सम्यग्-मिथ्याक्रिया का एक साथ न होना]
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करने के साथ सम्यक्रिया नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है, यथासम्यक्क्रिया अथवा मिथ्याक्रिया।
॥ तिर्यक्योनिक अधिकार का द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में सम्यक्रिया और मिथ्याक्रिया एक साथ एक जीव नहीं कर सकता, इस विषय को अन्यतीर्थिकों की मान्यता का पूर्वपक्ष के रूप में कथन करके उसका खण्डन किया गया है। अन्यतीर्थिक कहते हैं, विस्तार से व्यक्त करते हैं, अपनी बात दूसरों को समझाते हैं और निश्चित रूप से निरूपण करते हैं कि 'एक जीव एक समय में एक साथ सम्यक्रिया भी करता है और मिथ्याक्रिया भी करता है। सुन्दर अध्यवसाय वाली क्रिया सम्यक्रिया है और असुन्दर अध्यवसाय वाली क्रिया मिथ्याक्रिया है। जिस समय जीव सम्यक क्रिया करता है उसके साथ मिथ्याक्रिया भी करता है और जिस समय मिथ्याक्रिया करता है उस समय सम्यक्क्रिया भी करता है। क्योंकि जीव का स्वभाव उभयक्रिया करने का है। दोनों क्रियाओं को संबलित रूप में करने का जीव का स्वभाव है। अतः जीव जिस किसी भी अच्छी या बुरी क्रिया में प्रवृत्त होता है तो उसका उभयक्रिया करने का स्वभाव विद्यमान रहता है। उभयक्रिया करने का स्वभाव होने से उसकी क्रिया भी उभयरूप होती है। दूध और पानी मिला हुआ होने पर उसे उभयरूप कहना होगा, एकरूप नहीं। अतएव जिस समय जीव सम्यक्रिया कर रहा है उस समय उसके उभयक्रियाकरणस्वभाव की प्रवत्ति भी हो रही है. अन्यथा सर्वात्मना प्रवत्ति नहीं हो सकती। उभयकरणस्वभाव की प्रवत्ति होने से
। उभयकरणस्वभाव की प्रवृत्ति होने से जिस समय सम्यक्रिया हो रही है उस समय मिथ्याक्रिया भी हो रही है और जिस समय मिथ्यक्रिया हो रही है उस समय सम्यक्क्रिया भी हो रही है अतः एक जीव एक समय में एक साथ दोनों क्रियाएं कर सकता है-सम्यक्रिया भी और मिथ्याक्रिया भी।'
उक्त अन्यतीर्थिकों की मान्यता मिथ्या है। प्रभु फरमाते हैं कि गौतम ! एक जीव एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है-सम्यक्रिया अथवा मिथ्याक्रिया। वह इन दोनों क्रियाओं को एक साथ नहीं कर सकता क्योंकि इन दोनों में परस्परपरिहाररूप विरोध है। सम्यक्क्रिया हो रही है तो मिथ्याक्रिया नहीं हो सकती और मिथ्याक्रिया हो रही है तो सम्यक्रिया नहीं हो सकती। जीव का उभयकरणस्वभाव है ही नहीं। यदि उभयकरणस्वभाव माना जाय तो मिथ्यात्व की कभी निवृत्ति नहीं होगी और ऐसी स्थिति में मोक्ष का अभाव हो जावेगा।
अतएव यह सिद्ध होता है कि सम्यक्रिया करते समय मिथ्याक्रिया नहीं करता और मिथ्याक्रिया करते समय सम्यक्रिया नहीं करता। सम्यक्रिया और मिथ्याक्रिया एक दूसरे को छोड़कर रहती है, एक साथ नहीं रह सकती। अतएव यही सही सिद्धान्त हैं कि एक जीव एक समय में एक ही क्रिया कर सकता है-सम्यक्त्वक्रिया या मिथ्याक्रिया, दोनों क्रियाएं एक साथ कदापि सम्भव नहीं हैं।
॥ तृतीय प्रतिपत्ति के तिर्यक्योनिक अधिकार में
द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥