Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
पुरुष-नपुंसक को लेकर कहा गया है, उसका वृत्ति में उल्लेख नहीं है। वृत्तिकार ने 'एयासिं णं भंते ! तिरिक्खजोणियइत्थीणं' पाठ से ही अल्पबहुत्व का आरंभ किया है।
अल्पबहुत्व की व्याख्या मूलार्थ से ही स्पष्ट है और पूर्व में अलग-अलग प्रसंगों में सब प्रकार के जीवों का प्रमाण और उसकी समझाइश हेतुपूर्वक दे दी गई है, अतएव यहाँ पुनः उसे दोहराना अनावश्यक ही है। समुदाय रूप में स्त्री-पुरुष-नपुंसकों की स्थिति
६३. इत्थीण भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा! एगेणंआएसेणंजहा पुट्विंभाणियं, एवं पुरिसस्स वि नपुंसकस्सवि।संचिट्ठणा पुनरवि तिण्हंपि जहा पुव्वि भाणिया, अंतरं पि तिण्हं पि जहा पुब्धि भाणियं तहा नेयव्वं ।
[६३] भगवन् ! स्त्रियों की कितने काल की स्थिति कही गई है ?
गौतम ! 'एक अपेक्षा से' इत्यादि कथन जो स्त्री-प्रकरण में किया गया है, वही यहाँ करना चाहिए। इसी प्रकार पुरुष और नपुंसक की भी स्थिति आदि का कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। तीनों की संचिट्ठणा (कायस्थिति) और तीनों का अन्तर भी जो अपने-अपने प्रकरण में कहा गया है, वही यहाँ (समुदाय रूप में) कहना चाहिए।
_ विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में स्त्री, पुरुष और नपुंसकों को लेकर जो कालस्थिति (भवस्थिति), संचिट्ठणा (कायस्थिति) और अन्तर आदि का पूर्व में पृथक्-पृथक् प्रकरण में वर्णन किया गया है, उसी का समुदायरूप में संकलन है। जो कथन पहले अलग-अलग प्रकरणों में किया गया है, उसका यहाँ समुदाय रूप में कथन अभिप्रेत होने से पुनरुक्ति दोष का प्रसंग नहीं है।
वृत्तिकार ने यहां वह पाठ माना है जो अल्पबहुत्व सम्बन्धी पूर्ववर्ती सूत्र के प्रथम अल्पबहुत्व के रूप में दिया गया है। वह इस प्रकार है-'एयासिं णं भंते इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसकाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा ४ ? सव्वत्थोवा पुरिसा, इत्थीओ संखेज्जगुणाओ, नपुंसका अणंतगुणा।'
उक्त अल्पबहुत्व में समुदायरूप में स्त्री-पुरुष एवं नपुंसकों का कथन होने से वृत्तिकार ने इसे सामुदायिक प्रकरण में लिया है। सामुदायिक स्थिति, संचिट्ठणा और अन्तर के साथ ही सामुदायिक अल्पबहुत्व होने से यहाँ यह पाठ विशेष संगत होता है। लेकिन अल्पबहुत्व के साधर्म्य से आठ अल्पबहुत्वों के साथ उसे प्रथम अल्पबहुत्व के रूप में पूर्वसूत्र में दे दिया है। इस प्रकार केवल स्थानभेद हैं-आशय भेद नहीं
स्त्रियों की पुरुषों से अधिकता _____६४.तिरिक्खजोणित्थियाओ तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिगुणाओ तिरूवाधियाओ, मणुस्सित्थियाओ मणुस्सपुरिसेहितो सत्तावीसइगुणाओ सत्तावीसइरूवाहियाओ देवित्थियाओ