Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति: बाहल्य की अपेक्षा तुल्यतादि]
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• गौतम ! सोलह हजार योजन का अन्तर है। नीचे के चरमन्त तक एक लाख योजन का अन्तर है। अपबहुलकाण्ड के ऊपर के चरमान्त तक एक लाख योजन का और नीचे के चरमान्त तक एक लाख अस्सी हजार योजन का अन्तर है।
घनोदधि के ऊपर के चरमान्त तक एक लाख अस्सी हजार और नीचे के चरमान्त तक दो लाख योजन का अन्तर है।
इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से घनवात के ऊपर के चरमान्त तक दो लाख योजन का अन्तर है और नीचे के चरमान्त से असंख्यात लाख योजन का अन्तर है।
इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से तनुवात के ऊपर के चरमान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है और नीचे के चरमान्त तक भी असंख्यात लाख योजन का अन्तर है। इसी प्रकार अवकाशान्तर के दोनों चरमान्तों का भी अन्तर समझना चाहिए।
हे भगवन् ! दूसरी पृथ्वी (शर्करापृथ्वी) के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त के बीच कितना अन्तर है?
गौतम ! एक लाख बत्तीस हजार योजन का अन्तर है। घनोदधि के उपरि चरमान्त के बीच एक लाख बत्तीस हजार योजन का अन्तर है। नीचे के चरमान्त तक एक लाख बावन हजार योजन का अन्तर है। घनवात के उपरितन चरमान्त के अन्तर भी इतना ही है। घनवात के नीचे के चरमान्त तक तथा तनुवात और अवकाशान्तर के ऊपर और नीचे के चरमान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है। इस प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिए। विशेषता यह है कि जिस पृथ्वी का जितना बाहल्य है उससे घनोदधि का संबंध बुद्धि से जोड़ लेना चहिए। जैसे कि तीसरी पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तालीस हजार योजन का अन्तर है। पंकप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख चवालीस हजार का अन्तर है। घूमप्रभा के ऊपरी चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तीस हजार योजन का अन्तर है। तमःप्रभा में एक लाख छत्तीस हजार योजन का अन्तर तथा अधःसप्तम पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि का चरमान्त एक लाख अट्ठावीस हजार योजन है।
इसी प्रकार घनवात के अधस्तन चरमान्त की पृच्छा में तनुवात और अवकाशान्तर के उपरितन और अधस्तन की पृच्छा में असंख्यात लाख योजन का अन्तर कहना चाहिए। बाहल्य की अपेक्षा तुल्यतादि
८०. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला, विसेसाहिया, संखेज्जगुणा ? वित्थरेणं किं तुल्ला विसेसहीणा संखेज्जगुणहीणा?
गोयमा ! इमाणं रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणंनो तुल्ला, विसेसहिया नो संखेज्जगुणा, वित्थारेणं नो तुल्ला, विसेसहीणा, णो संखेज्जगुणहीना।