Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति:लेश्यादिद्वार]
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वे हुंडकसंस्थान वाले हैं और उत्तरवैक्रिय की अपेक्षा भी वे हुंडकसंस्थान वाले ही हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के संस्थान हैं।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीर वर्ण की अपेक्षा कैसे कहे गये हैं ?
गौतम ! काले, काली छाया (कान्ति) वाले यावत् अत्यन्त काले कहे गये हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों का वर्ण जानना चाहिए।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीर की गन्ध कैसी कही गई है ?
गौतम ! जैसे कोई मरा हुआ सर्प हो, इत्यादि पूर्ववत् कथन करना चाहिए। सप्तमीपृथ्वी तक के नारकों की गन्ध इसी प्रकार जाननी चाहिए।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का स्पर्श कैसा कहा गया है ?
गौतम ! उनके शरीर की चमड़ी फटी हुई होने से तथा झुर्रिया होने से कान्तिरहित है, कर्कश है, कठोर है, छेद वाली है और जली हुई वस्तु की तरह खुरदरी है। (पकी हुई ईंट की तरह खुरदरे शरीर है)। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए। - विवेचन-इनका विवेचन पूर्व में किया जा चुका है।
८८.[१] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं केरिसया पोग्गला उसासत्ताए परिणमंति?
गौतम ! जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा ते तेसिं उसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसु वि।
[८८] (१) भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं ?
___ गौतम ! जो पुद्गल अनिष्ट यावत् अमणाम होते हैं वे नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के रूप में परिणत होते हैं।
इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों का कथन करना चाहिए।
इसी प्रकार जो पुद्गल अनिष्ट एवं अमणाम होते हैं, वे नैरयिकों के आहार रूप में परिणत होते हैं। ऐसा ही कथन रत्नप्रभादि सातों नरकपृथ्वियों के नारकों के सम्बन्ध में जानना चाहिए। लेश्यादिद्वार
८८. [२] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं कति लेसाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! एक्का काउलेसा पण्णत्ता। एवं सक्करप्पभाए वि।
बालुप्पभाए पुच्छा, दो लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-नीललेसा कापोतलेसा य। तत्थ जे काउलेसा ते बहुतरा,