Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति :विमानों के विषय में प्रश्न]
[२७५
और स्थावरकाय में समवतार होता है। इस विषय में आजीव दृष्टान्त समझना चाहिए। अर्थात् जिस प्रकार 'जीव' शब्द में समस्त त्रस, स्थावर, सूक्ष्म-बादर पर्याप्त-अपर्याप्त और षट्काय आदि का समावेश होता हैं, उसी प्रकार इन चौरासी लाख जीवयोनियों में समस्त संसारवर्ती जीवों का समावेश समझना चाहिए।
___ यहाँ जो चौरासी लाख योनियों का उल्लेख किया हैं, यह उपलक्षण है। इससे अन्यान्य भी जातिकुलकोटि समझना चाहिए। क्योंकि पक्षियों की बारह लाख, भुजपरिसर्प की नौ लाख, उरपरिसर्प की दश लाख, चतुष्पदों की दश लाख, जलचरों की साढे बारह लाख, चतुरिन्द्रियों की नौ लाख, त्रीन्द्रियों की आठ लाख, द्वीन्द्रियों की सात लाख, पुष्पजाति की सोलह लाख-इनको मिलाने से साढे तिरानवै लाख होती है, अतः यहाँ जो चौरासी लाख योनियों का कथन किया गया है वह उपलक्षणमात्र है। अन्यान्य बी कुलकोटियां होती हैं।
अन्यत्र कुलकोटियां इस प्रकार गिनाई हैं
पृथ्वीकाय की १२ लाख, अप्काय की सात लाख, तेजस्काय की तीन लाख, वायुकाय की सात लाख, वनस्पतिकाय की अट्ठावीस लाख, द्वीन्द्रिय की सात लाख, त्रीन्द्रिय की आठ लाख, चतुरिन्द्रिय की नौ लाख, जलचर की साढे बारह लाख, स्थलचर की दस लाख, खेचर की बारह लाख, उरपरिसर्प की दस लाख, भुजपरिसर्प की नौ लाख, नारक की पच्चीस लाख, देवता की छव्वीस लाख, मनुष्य की बारह लाख, कुल मिलाकर एक करोड़ साढे सित्याणु लाख कुलकोटियां हैं।
___ चौरासीलाख जीवयोनियों की परिगणना इस प्रकार भी संगत होती है-त्रस जीवों की जीवयोनियां ३२ लाख हैं। वह इस प्रकार-दो लाख द्वीन्द्रिय की, दो लाख त्रीन्द्रिय की, दो लाख चतुरिन्द्रिय की, चार लाख तिर्यक्पंचेन्द्रिय की, चार लाख नारक की, चार लाख देव की और चौदह लाख मनुष्यों की-ये कुल मिलाकर ३२ लाख त्रसजीवों की योनियां हैं। स्थावरजीवों की योनियां ५२ लाख हैं-सात लाख पृथ्वीकाय की , सात लाख अप्काय की,७ लाख तेजस्काय की, ७ लाख वायुकाय की, २४ लाख वनस्पति की-यों ५२ लाख स्थावरजीवों की योनियां हैं। त्रस की ३२ लाख और स्थावर की ५२ लाख मिलकर ८४ लाख जीवयोनियां हैं। विमानों के विषय में प्रश्न
९९. अत्थि णं भंते ! विमाणाई । सोत्थियाणि सोत्थियावत्ताई सोत्थियपभाई सोत्थियकन्ताइं, सोत्थियवन्नाइं, सोत्थियलेसाइंसोत्थियज्झयाइं सोत्थियसिंगाराई,सोत्थियकूडाई, सोत्थियसिट्ठाई सोत्थियउत्तरवडिंसगाई ?
हंता अत्थि। ते णं विमाणा केमहालया पण्णत्ता ?
गोयमा ! जावइए णं सूरिए उवेइ जावइएणं य सूरिए अत्थमइ एवइया तिण्णोवासंतराइं अत्थेगइयस्स देवस्स एक्के विक्कमे सिया।से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए १. टीकाकर के अनुसार 'अच्चियाइं अच्चियावत्ताई' इत्यादि पाठ है।