Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति: पृथ्वीकायिकों के विषय में विशेष जानकारी]
[२८१
नेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई; एवं सव्वं भाणियव्वं जाव सव्वट्ठसिद्धदेवत्ति।
जीवे णं भंते ! जीवे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्धं। पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! सव्वद्धं । एवं जाव तसकाइए। [१०] हे भगवन् ! पृथ्वी कितने प्रकार की कही है ?
गौतम ! पृथ्वी छह प्रकार की कही गई है, यथा-श्लक्ष्ण (मृदु) पृथ्वी, शुद्धपृथ्वी, बालुकापृथ्वी, मनःपृथ्वी, शर्करापृथ्वी और खरपृथ्वी।
हे भगवन् ! श्लक्ष्णपृथ्वी की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एकहजार वर्ष । हे भगवन् ! शुद्धपृथ्वी की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारहहजार वर्ष । हे भगवन् ! बालुकापृथ्वी की पृच्छा ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चौदहहजार वर्ष । हे भगवन् ! मनःशिलापृथ्वी की पृच्छा ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सोलहहजार वर्ष । हे भगवन् ! शर्करापृथ्वी की पृच्छा ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अठारहहजार वर्ष । हे भगवन् ! खरपृथ्वी की पृच्छा ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीसहजार वर्ष । भगवन् ! नैरयिकों की कितनी स्थिति कही है ?.
गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति है। इस प्रकार सर्वार्थसिद्ध के देवों तक की स्थिति (प्रज्ञापना के स्थिति पद के अनुसार) कहनी चाहिए।
भगवन् ! जीव, जीव के रूप में कब तक रहता है ? गौतम ! सब काल तक जीव जीव ही रहता है। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक के रूप में कब तक रहता है ? गौतम ! (पृथ्वीकाय सामान्य की अपेक्षा) सर्वकाल तक रहता है। इस प्रकार त्रसकाय तक कहना