Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति: गंधांग प्ररूपण ]
[ २७३
कइ णं भंते ! हरियकाया हरियकायसया पण्णत्ता ?
गोयमा ! ओ हरियकाया तओ हरियकायसया पण्णत्ता-फलसहस्सं च विंटबद्धाणं, फलसहस्सं य णालबद्धाणं, ते सव्वे हरितकायमेव समोयरंति । ते एवं समणुगम्ममाणा समणुगम्ममाणा एवं समणुगाहिज्जमाणा २, एवं समणुपेहिज्जमाणा २, एवं समणुचिंतिज्जमाणा २, एएसु चेव दोसु कासु समोयरंति, तं जहा - तसकाए चेव थावरकाए चेव । एवमेव सपुव्वावरेणं आजीवियदिट्टंतेणं चउरासीति जातिकुलकोडी जोणिपमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खाया।
हैं ।)
[९८] हे भगवन् ! गंध (गंधांग) कितने कहे गये हैं ? हे भगवन् ! गन्धशत कितने हैं ? गौतम ! सात गंध (गंधांग) हैं और सात ही गन्धशत हैं ।
हे भगवन् ! फूलों की कितनी लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं ?
गौतम ! फूलों की सोलह लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं, यथा- चार लाख जलज पुष्पों की, चार लाख स्थलज पुष्पों की, चार लाख महावृक्षों के फूलों की और चार लाख महागुल्मिक फूलों की ।
हे भगवन् ! वल्लियाँ और वल्लिशत कितने प्रकार के हैं ?
गौतम ! वल्लियों के चार प्रकार हैं और चार वल्लिशत है । ( वल्लियों के चार सौ अवान्तर भेद
हे भगवन् ! लताएँ कितनी हैं और लताशत कितने ?
गौतम ! आठ प्रकार की लताएँ हैं और आठ लताशत हैं । अर्थात् ( आठ सौ लता के अवान्तर भेद हैं ।)
भगवन् ! हरितकाय कितने हैं और हरितकायशत कितने हैं ?
गौतम ! हरितका तीन प्रकार के हैं और तीन ही हरितकायशत हैं। (अर्थात् हरितकाय की तीन सौ अवान्तर जातियां हैं।) बिंटबद्ध फल के हजार प्रकार और नालबद्ध फल के हजार प्रकार, ये सब हरितकाय में ही समाविष्ट हैं। इस प्रकार सूत्र के द्वारा स्वयं समझे जाने पर, दूसरों द्वारा सूत्र से समझाये जाने पर, अर्थालोचन द्वारा चिन्तन किये जाने पर और युक्तियों द्वारा पुनः पुनः पर्यालोचन करने पर सब दो कायों मेंत्रसकाय और स्थावरकाय में समाविष्ट होते हैं । इस प्रकार पूर्वापर विचारणा करने पर समस्त संसारी जीवों की (आजीविक दृष्टान्त से) चौरासी लाख योनिप्रमुख जातिकुलकोडी होती हैं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा है ।
विवेचन—–यहाँ मूलपाठ में 'गंधा' पाठ है, यह पद के एकदेश में पदसमुदाय के उपचार से 'गंधाङ्ग' का वाचक समझना चाहिए। अर्थात् 'गंधांग' कितने हैं, यह प्रश्न का भावार्थ है । दूसरा प्रश्न है कि गंधांग की कितनी सौ अवान्तर जातियां हैं।
भगवान् ने कहा- गौतम ! सात गंधाङ्ग हैं और सातसौ गंधांग की उपजातियां हैं। मोटे रूप में सात गंधांग इस प्रकार बताये हैं - १. मूल, २. त्वक्, ३. काष्ठ, ४. निर्यास, ५. पत्र, ६. फूल और ७. फल । मुस्ता, वालुका, उसीर आदि 'मूल' शब्द से गृहीत हुए हैं। सुवर्ण छाल आदि त्वक् हैं । चन्दन,