Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२५४]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
३
तृतीय
,
२०११
॥
२२ सागरोपम प्रतिपूर्ण
प्रस्तट एक ही प्रस्तट है
तमस्तमःप्रभा जघन्य २२ सागरोपम
उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम
उद्वर्तना __ प्रज्ञापना के व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार उद्वर्तना कहनी चाहिए। वह बहुत विस्तृत है अतः वहीं से जानना चाहिए। संक्षेप में भावार्थ यह है कि प्रथम नरक पृथ्वी से लेकर छठी नरक पृथ्वी के नैरयिक वहाँ से सीधे निकलकर नैरयिक, देव, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संमूर्छिम पंचेन्द्रिय और असंख्येय वर्षायु वाले तिर्यंच मनुष्य को छोड़कर शेष तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। सप्तम पृथ्वी के नैरयिक गर्भज तिर्यक् पंचेन्द्रियों में ही उत्पन्न होते हैं, शेष में नहीं। नरकों में पृथ्वी आदि का स्पर्शादि निरूपण
___९२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पुढविफासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा ! अणिटुं जाव अमणामं । एवं जाव अहेसत्तमाए। इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं आउफासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति ?
गोयमा ! अणिटुं जाव अमणाम। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं जाव वणप्फइफासं अहेसत्तमाए पुढवीए।
इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु?
हंता ! गोयमा ! इमा णं रयणप्पभाएपुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय जाव सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु।
दोच्चा णं भंते ! पुढवी तच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं पुच्छा ?
हंता गोयमा ! दोच्चा णं पुढवी जाव सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु। एवं एएणं अभिलावेणं जाव छट्ठिया पुढवी अहेसत्तमं पुढविं पणिहाय सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु।
[९२] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं ?
गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमणाम भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहएि।
हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के जलस्पर्श का अनुभव करते हैं ?