Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
ततीय प्रतिपत्ति: नरकावासों का संस्थान]
[२२५
संख्या
पृथ्वीनाम
बाहल्य (योजन) ।
रत्नप्रभा शर्कराप्रभा बालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा
१,८०००० १,३२००० १, २८००० १, २०००० १, १८००० १, १६०००
मध्यभाग पोलार (योजन) १,७८००० १,३०००० १, २६००० १, १८००० १,१६००० १, १४०००
नरकावास संख्या तीस लाख पच्चीस लाख पन्द्रह लाख दस लाख तीन लाख निन्यानवै हजार नौ सौ पिच्यानवै पांच
अधःसप्तम पृ.
१, ०८०००
३०००
नरकावासों का संस्थान . ८२. [१] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरका किंसंठिया पण्णता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आवलियपविद्वा य आवलियबाहिरा या तत्थ णं जे ते आवलियपविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-वट्टा, तंसा, चउरंसा. तत्थ णं जे ते आवलियबाहिरा ते णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता, तंजहा-अयकोट्ठसंठिया,पिट्ठपयणगसंठिया, कंडूसंठिया, लोहीसंठिया, कडाहसंठिया, थालीसंठिया, पिढरगसंठिया, किमियडसंठिया, किन्नपुडगसंठिया, उडयसंठिया, मुरयसंठिया, मुयंगसंठिया, नंदिमुयंगसंठिया,आलिंगकसंठिया, सुघोससंठिया, दद्दरयसंठिया, पणवसंठिया, पडहसंठिया, भेरीसंठिया, झल्लरिसंठिया, कुतुंबकसंठिया, नालिसंठिया, एवं जाव तमाए।
अहे सत्तमाए णं भंते ! पुढवीए णरका किंसंठिया पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-वट्टे य तंसा य। [८२-१] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों का आकार कैसा कहा गया है ?
गौतम ! ये नरकावास दो तरह के हैं-१ आवलिकाप्रविष्ट और २ आवलिकाबाह्म। इनमें जो आवलिकाप्रविष्ट (श्रेणीबद्ध) हैं वे तीन प्रकार के हैं-१. गोल, २. त्रिकोण और ३. चतुष्कोण। जो आवलिका से बाहर (पुष्पावकीर्ण) हैं वे नाना प्रकार के आकारों के हैं, जैसे कोई लोहे की कोठी के आकार के हैं, कोई मदिरा बनाने हेतु पिष्ट आदि पकाने के बर्तन के आकार के हैं, कोई कंदू-हलवाई के पाकपात्र जैसे हैं, कोई लोही-तवा के आकार के हैं, कोई कडाही के आकार के हैं, कोई थाली-ओदन पकाने के बर्तन जैसे हैं, कोई पिठरक (जिसमें बहुत से मनुष्यों के लिए भोजन पकाया जाता है वह बर्तन) के आकार के हैं, कोई कृमिक (जीवविशेष) के आकार के हैं, कोई कीर्णपुटक जैसे हैं, कोई तापस के आश्रम जैसे, कोई