Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति :नरकावासों के वर्णादि]
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आयाम-विष्कंभ असंख्यात हजार योजन और परिधि भी असंख्यात हजार योजन की है।
इसी तरह छठी पृथ्वी तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! सातवीं नरकपृथ्वी के नरकावासों का आयाम-विष्कंभ और परिधि कितनी है ?
गौतम ! सातवीं पृथ्वी के नरकावास दो प्रकर के हैं-(१) संख्यात हजार योजन वाले और (२) असंख्यात हजार योजन विस्तार वाले। इनमे जो संख्यात हजार योजन विस्तार वाला है वह एक लाख योजन आयाम-विष्कंभ वाला है उसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठावीस धनुष, साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। जो असंख्यात हजार योजन विस्तार वाले हैं, उनका आयाम-विष्कंभ असंख्यात हजार योजन का और परिधि भी असंख्यात हजार योजन की है।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में नरकावासों के संस्थान और आयाम-विष्कम्भ तथा परिधि बताई गई है। नरकावास दो प्रकार के हैं-आवलिकाप्रविष्ट और आवलिकाबाह्य । आठों दिशओं में जो समश्रेणी में (श्रेणीबद्धकतारबद्ध) हैं, वे आवलिकाप्रविष्ट कहलाते हैं। वे तीन प्रकार के हैं, वृत्त, तिकोन, और चौकोन। जो पुष्पों की तरह बिखरे-बिखरे हैं वे नरकावास नाना प्रकार के हैं। उन नाना प्रकारों को दो संग्रहणी गाथाओं में बताया गया हैं -
लोहे की कोठी, मदिरा बनाने हेतु आटे को पकाने का बर्तन, हलवाई की भट्टी, तवा, कढाई, स्थाली (डेगची), पिठरक (बड़ा चरु), तापस का आश्रम, मुरज, नन्दीमृदंग, आलिंगक, मिट्टी का मृदंग, सुघोषा, दर्दर (वाद्यविशेष), पणव (भाण्डों का ढोल), पटह (सामान्य ढोल), झालर, भेरी, कुस्तुम्बक (वाद्यविशेष)
और नाडी (घटिका) के आकार के नरकावास हैं। ऊपर से संकुचित और नीचे से विस्तीर्ण है वह मृदंग है और ऊपर और नीचे दोनों जगह सम हो वह मुरज है।
___ उक्त वक्तव्यता रत्नप्रभा से लेकर तमप्रभा नरकपृथ्वी के लिए समझनी चाहिए। सातवीं पृथ्वी के नरकावास आवलिकाप्रविष्ट ही हैं, आवलिकाबाह्य नहीं।आवलिकाप्रविष्ट ये नरकावास पांच हैं। चारों दिशाओं में चार हैं और मध्य में एक है। मध्य का अप्रतिष्ठान नरकावास गोल है और शेष ४ नरकावास तिकोन हैं।
रत्नप्रभादि के नरकावासों का बाहल्य तीन हजार योजन का है। एक हजार योजन का नीचे का भाग घन है, एक हजार योजन मध्यभाग झुषिर है और ऊपर का एक हजार योजन का भाग संकुचित है। इसी तरह सातों पृथ्वियों के नरकावासों का बाहल्य है। आयाम-विष्कंभ और परिधि मूलपाठ से ही स्पष्ट है। नरकावासों के वर्णादि
८३. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरया केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता ?
अय कोट्ठ पिट्ठपयणग कंडूलोही कडाह संठाणा। थालीपिहडग किण्ह(ग) उडए मुखे मुयंगे य॥१॥ नंदिमुइंगे आलिंग सुघोसे दद्दरे य पणवे य। पडहगझल्लरि भेरी कुत्धुंबग नाडिसंठाणा ॥२॥