Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय प्रतिपत्ति: स्त्रियों की पुरुषों से अधिकता]
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देवपुरिसेहितो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसइरूवाहियाओ।
से त्तं तिविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। तिविहेसु होइ भेयो, ठिई य संचिट्ठणंतरप्पबहुं । वेदाण य बंधठिई वेओ तह किंपगारो उ ॥१॥ से त्तं तिविहा संसारसमापन्नगा जीव पण्णत्ता । [६४] तिर्यक्योनिक की स्त्रियां तिर्यक्योनि के पुरुषों से तीन गुनी और त्रिरूप अधिक हैं। मनुष्यस्त्रियां मनुष्यपुरुषों से सत्तावीसगुनी और सत्तावीसरूप अधिक हैं। देवस्त्रियां देवपुरुषों से बत्तीसगुनी और बत्तीसरूप अधिक हैं। इस प्रकार संसार समापनक जीव तीन प्रकार के हैं, यह प्रतिपादन पूरा हुआ ।
(संकलित गाथा) तीन वेदरूप दूसरी प्रतिपत्ति में प्रथम अधिकार भेदविषयक है, इसके बाद स्थिति, संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व का अधिकार है। तत्पश्चात् वेदों की बंधस्थिति तथा वेदों का अनुभव किस प्रकार का है, यह वर्णन किया गया है।
॥ त्रिविध संसारसमापनक जीवरूप दूसरी प्रतिपत्ति समाप्त ॥ विवेचन-पहले कहा गया है कि पुरुषों से स्त्रियां अधिक हैं तो सहज प्रश्न होता है कि कितनी अधिक हैं ? इस जिज्ञासा का समाधान इस सूत्र में किया गया है।
तिर्यक्योनि की स्त्रियां तिर्यक् पुरुषों से तीन गुनी हैं अर्थात् संख्या में तीनगुनीविशेष हैं। 'गुण' शब्द गुण-दोष के अर्थ में भी आता है, अतः उसे स्पष्ट करने के लिए त्रिरूप अधिक विशेषण दिया है। 'गुण' से यहाँ संख्या अर्थ अभिप्रेत है।
मनुष्यस्त्रियां मनुष्यपुरुषों से सत्तवीसगुनी हैं और देवस्त्रियां देवपुरुषों से बत्तीसगुनी हैं।' उपसंहार
इस दूसरी प्रतिपत्ति के अन्त में विषय को संकलित करने वाली गाथा दी गई है। उसमें कहा गया है कि त्रिविध वेदों की वक्तव्यता वाली इस दूसरी प्रतिपत्ति में पहले भेद, तदनन्तर क्रमशः स्थिति, संचिट्ठणा (कायस्थिति), अन्तर एवं अल्पबहुत्व का प्रतिपादन है। इसके पश्चात् वेदों की बंधस्थिति और वेदों के अनुभवप्रकार का कथन किया गया है।
॥ त्रिविध संसारसमापनक जीव वक्तव्यतारूप द्वितीय प्रतिपत्ति समाप्त॥
१. तिगुणा तिरूव अहिया तिरियाणं इत्थिया मुणेयव्वा।
सत्तावीसगुणा पुण मणुयाणं तदहिया चेव ॥१॥ बत्तीसगुणा बत्तीस रूप अहिया उ होंति देवाणं । देवीओ पण्णत्ता जिणेहिं जियरागदोसेहि ॥२॥