Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२००]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
(४) चौथी पंकप्रभा में सात प्रस्तर हैं। पहले प्रस्तर में प्रत्येक दिशा में १६-१६ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं और विदिशा में १५-१५ हैं, मध्य में एक नरकेन्द्रक है। सब मिलकर १२५ नरकावास हुए। शेष छह प्रस्तरों में प्रत्येक में आठ-आठ की हानि है अतः सब मिलाकर ७०७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं-शेष ९९९२९३ (नौ लाख निन्यानवै हजार दो सौ तिरानवै) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं। दोनों मिलाकर दस लाख नरकावास पंकप्रभा में हैं।'
(५) पांचवीं धूमप्रभा में ५ प्रस्तर हैं। पहले प्रस्तर में एक-एक दिशा में नौ-नौ आवलिकाप्रविष्ट विमान हैं और विदिशाओं में आठ-आठ हैं। मध्य में एक नरकेन्दक हैं। सब मिलाकर ६९ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं । शेष चार प्रस्तरों में पूर्ववत् आठ-आठ की हानि है। अतः सब मिलाकर २६५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष २९९७३५ ( दो लाख निन्यानवै हजार सात सौ पैंतीस) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं। दोनों मिलकर तीन लाख नरकावास पांचवीं पृथ्वी में हैं। २
(६) छठी तमःप्रभा में तीन प्रस्तर हैं । प्रथम प्रस्तर की प्रत्येक दिशा में चार-चार और प्रत्येक विदिशा में ३-३, मध्य में एक नरकेन्द्रक सब मिलाकर २९ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष दो प्रस्तरों में क्रम से आठ-आठ की हानि है । अतः सब मिलाकर ६३ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष ९९९३२ (निन्यानवै हजार नौ सौ बत्तीस) पुष्पावकीर्णक हैं। दोनों मिलाकर छठी पृथ्वी में ९९९९५ नरकावास हैं। ३
(७) सातवीं पृथ्वी में केवल पांच नरकावास हैं । काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान उनके नाम हैं । अप्रतिष्ठान नामक नरकावास मध्य में है और उसके पूर्व में काल नरकावास, पश्चिम में महाकाल, . दक्षिण में रौरव और उत्तर में महारौरव नरकावास है। पृथ्वी का नाम आवलिका प्रविष्ट पुष्पावकीर्णक
कुल नरकावास नरकावास
नरकावास रत्नप्रभा
४४३३ २९९५५६७
३०००००० शर्कराप्रभा
२६९५ २४९७३०५
२५००००० बालुकाप्रभा
१४८५ १४९८५१५
१५००००० . पंकप्रभा
७०७ ९९९२९३
१००००००
१. तेणउया दोण्णि सया नवनउइसहस्सा नव य लक्खा य।
पंकाए सेढिगया सत्तसया हुँति सत्तहिया ॥ २. सत्तसया पणतीसा नवनवइसहस्स दो य लक्खा य।
धूमाए सेढिगया पणसठ्ठा दो सया होति ॥ ३. नवनउई य सहस्सा नव चेव सया हवंति बत्तीसा।
पुढवीए छट्ठीए पइण्णगाणेस संखेवो॥ ४. पुव्वेण होइ कालो अवरेण अप्पइट्ठ महकाले।
रोरु दहिणपासे उत्तरपासे महारोरू॥