Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति : नरकावासों की संख्या]
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की संख्या जाननी चाहिए। प्रथम पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में प्रन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं पृथ्वी में पांच अनुत्तर महानरकावास हैं।
अधःसप्तमपृथ्वी में जो बहुत बड़े अनुत्तर महान नरकावास कहे गये हैं, वे पांच हैं, यथा-१. काल, २. महाकाल, ३. रौरव, ४. महारौरव और ५. अप्रतिष्ठान।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में प्रत्येक नरकापृथ्वी में नरकावासों की संख्या बताई गई है। - (१) प्रथम रत्नप्रभापृथ्वी से लगाकर छठी तमःप्रभापृथ्वी पर्यन्त पृथ्वियों में नरकावास दो प्रकार के हैं-आवलिकाप्रविष्ट और प्रकीर्णक रूप। जो नरकावास पंक्तिबद्ध हैं वे आवलिकाप्रविष्ट हैं और जो बिखरेबिखरे हैं, वे प्रकीर्णक रूप हैं । रत्नप्रभापृथ्वी के तेरह प्रस्तर (पाथड़े) हैं। प्रस्तर गृहभूमि तुल्य होते हैं। पहले प्रस्तर में पूर्वादि चारों दिशाओं में ४९-४९ नरकावास हैं । चार विदिशाओं में ४८-४८ नरकावास हैं। मध्य में सीमन्तक नाम का नरकेन्द्रक है। ये सब मिलकर ३८९ नरकावास होते हैं। शेष बारह प्रस्तरों में प्रत्येक में चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में एक-एक नरकावास कम होने से आठ-आठ नरकावास कमकम होते गये हैं। अर्थात् प्रथम प्रस्तर में ३८९, दूसरे में ३८१, तीसरे में ३७३ इस प्रकार आगे-आगे के प्रस्तर में आठ-आठ नरकावास कम हैं। इस प्रकार तेरह प्रस्तरों में कुल ४४३३ नरकावास आवलिकाप्रविष्ट हैं और शेष २९९५५६७ (उनतीस लाख पंचानवै हजार पांच सौ सडसठ) नरकावास प्रकीर्णक रूप हैं। कुल मिलाकर प्रथम रत्नप्रभापृथ्वी में तीस लाख नरकावास हैं।'
(२) शर्कराप्रभा के ग्यारह प्रस्तर हैं। पहले प्रस्तर में चारों दिशाओं में ३६-३६ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। चारों विदिशाओं में ३५-३५ नरकावास और मध्य में एक नरकेन्द्रक, सब मिलाकर २८५ नरकवास पहले प्रस्तर में आवलिकाप्रविष्ट हैं। शेष दस प्रस्तरों में प्रत्येक में आठ-आठ की हानि होने से सब प्रस्तरों के मिलाकर २६९५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष २४९७३०५ (चौवीस लाख सित्तानवै हजार तीन सौ पांच) पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं । दोनों मिलाकर पच्चीस लाख नरकावास दूसरी शर्कराप्रभा में हैं।'
(३) तीसरी बालुकाप्रभा में नौ प्रस्तर हैं। पहले प्रस्तर में प्रत्येक दिशा में २५-२५ विदिशा में २४२४ और मध्य में एक नरकेन्द्रक-कुल मिलाकर १९७ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष आठ प्रस्तरों में प्रत्येक में आठ-आठ की हानि है, सब मिलाकर १४८५ आवलिकाप्रविष्ट नरकावास हैं। शेष १४९८५१५ पुष्पावकीर्णक नरकावास हैं। दोनों मिलाकर पन्द्रह लाख नरकावास तीसरी पृथ्वी में हैं। ३
१. सत्तट्ठी पंचसया पणनउइसहस्स लक्खगुणतीसं।
रयणाए सेढिगया चोयालसया उ तित्तीसं ॥१॥ २. सत्ता णउइसहस्सा चउवीसं लक्खं तिसय पंचऽहिया।
बीयाए सेढिगया छव्वीससया उ पणनउया॥ ३. पंचसया पन्नारा अडनवइसहस्स लक्ख चोद्दस य।
तइयाए सेढिगया पणसीया चोद्दस सया उ॥