Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
दूसरा उदाहरण यह है कि जैसे कोई व्यक्ति हवा से भरे हुए डिब्बे या मशक को कमर पर बांधकर अथाह जल में प्रवेश करे तो वह जल के ऊपरी सतह पर ही रहेगा नीचे नहीं डूबेगा। वह जल के आधार पर स्थिर रहेगा। उसी तरह घनाम्बु पर पृथ्वियां टिकी रह सकती हैं।
ये सातों नरकभूमियां एक दूसरी के नीचे हैं, परन्तु बिल्कुल सटी हुई नहीं है। इनके बीच में बहुत अन्तर है। इस अन्तर में घनोदधि, घनवात, तनुवात और शुद्ध आकाश नीचे-नीचे हैं। प्रथम नरकभूमि के नीचे घनोदधि है, इसके नीचे घनवात है, इसके नीचे तनुवात है और इसके नीचे आकाश है। आकाश के बाद दूसरी नरकभूमि है। दूसरी और तीसरी नरकभूमि के बीच में भी क्रमश: घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश है। इसी तरह सातवीं नरकपृथ्वी तक सब भूमियों के नीचे उसी क्रम से घनोदधि आदि हैं।
अब सूत्रकार रत्नकाण्डादि का बाहल्य (मोटाई) बताते हैंरत्नादिकाण्डों का बाहल्य
७२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाएपुढवीए खरकंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाएपुढवीए रयणकंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एक्कं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते। एवं जाव रिठे।. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाएपुढवीए पंकबहुले कंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! चउरसीति जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पण्णत्ते।। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए आवबहुल्ले कंडे केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असीति जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही केवइयं बहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा! असंखेज्जइंजोयमसहस्साइंबाहल्लेणंपण्णत्ते।एवंतणुवाए वि,ओवासंतरे वि। सक्करप्पभाए णं पुढवीए घणोदही केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! बीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। सक्करप्पभाए णं पुढवीए घणवाए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। एवं तणुवाए वि, ओवासंतरे वि। जहा सक्करप्पभाए पुढवीए एवं जाव अहेसत्तमाए। [७२] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितनी मोटाई वाला कहा गया है ? गोयमा ! सोलह हजार योजन की मोटाई वाला कहा गया है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का रत्नकांड कितनी मोटाई वाला है ? गौतम ! वह एक हजार योजन की मोटाई वाला है।