Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय प्रतिपत्ति: नपुंसकों का अल्पबहुत्व]
उनसे वनस्पतिकायिक एके. ति. यो. नपुंसक अनन्तगुण हैं, क्योंकि वे अनन्त लोकाकाशप्रदेशराशिप्रमाण हैं। (४) मनुष्यनपुंसकसंबंधी अल्पबहुत्व
सपसे थोड़े अन्तद्वपिज मनुष्य- नपुंसक । ये संमूर्छिम समझने चाहिए, क्योंकि गर्भज मनुष्य नपुंसकों का वहाँ सद्भाव नहीं होता । कर्मभूमि से संहृत हुए हो भी सकते हैं।
अन्तर्द्वीपिज मनुष्य नपुंसकों से देवकुरु- उत्तरकुरु अकर्मभूमि के मनुष्य नपुंसक संख्येयगुण हैं, क्योंकि तद्गत गर्भजमनुष्य अन्तद्वीपिक गर्भजमनुष्यों से संख्येयगुण हैं, क्योंकि गर्भजमनुष्यों के उच्चार आदि में संमूर्छिम- मनुष्यों की उत्पत्ति होती है । स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं ।
उनसे हरिवर्ष-रम्यकवर्ष अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक संख्येयगुण हैं और स्वस्थान में तुल्य हैं। उनसे हैमवत-हैरण्यवत के अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक संख्येयगुण हैं और स्वस्थान में तुल्य हैं। उनसे भरत - ऐरवत कर्मभूमि के मनुष्य नपुंसक संख्येयगुण हैं और स्वस्थान में तुल्य हैं। उनसे पूर्वविदेह-पश्चिम विदेह कर्मभूमि के मनुष्य संख्येयगुण हैं और स्वस्थान में दोनों परस्पर तुल्य हैं। सर्वत्र युक्ति पूर्ववत् जाननी चाहिए।
(५) मिश्रित अल्पबहुत्व
सबसे थोड़े अधः सप्तमपृथ्वी नैरयिक नपुंसक,
उनसे छठी, पांचवी, चौथी, तीसरी, दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक यथोत्तर असंख्येयगुण,
उनसे अन्तर्द्वीपिक म. नपुंसक असंख्येयगुण ( संमूर्छिम मनुष्य की अपेक्षा),
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उनसे देवकुरु - उत्तरकुरु अकर्मभूमि के म. नपुंसक संख्येयगुण, उनसे हरिवर्ष-रम्यकवर्ष अकर्मभूमि के म. नपुंसक संख्येयगुण,
उनसे हैमवत-हैरण्यवत अकर्मभूमि के म. नपुंसक संख्येयगुण, उनसे भरत - एरवत कर्मभूमि के म. नपुंसक संख्येयगुण,
उनसे पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह कर्मभूमि के म. नपुंसक संख्येयगुण हैं और स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं,
उनसे रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, उनसे खेचर पंचे. तिर्यक्योनिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, उनसे स्थलचर पंचे. तिर्यक्योनिक नपुंसक संख्येयगुण हैं,
उनसे जलचर पंचे. तिर्यक्योनिक नपुंसक संख्येयगुण हैं,
उनसे चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक हैं,
उनसे तेजस्कायिक एके. तिर्यक्योनिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं,
उनसे पृथ्वी. अप्. वायुकायिक एके तिर्यक्योनिक नपुंसक यथोत्तर विशेषाधिक हैं,
उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं ।
युक्ति सर्वत्र पूर्ववत् जाननी चाहिए ।