Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसकों में, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसकों में, जलचरों में, स्थलचरों में, खेचरों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! सबसे थोड़े खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक, उनसे स्थलचर तिर्यक्योनिक नपुंसक संख्येयगुण, उनसे जलचर तिर्यक्योनिक नपुंसक संख्येयगुण, उनसे चतुरिन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक, उनसे तेजस्काय एकेन्द्रिय तिर्यक् नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक् नपुंसक विशेषाधिक। उनसे अप्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं।
(४) भगवन् ! इन मनुष्य नपुंसकों में, कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसकों में, अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसकों में और अन्तर्वीपों के मनुष्य नपुंसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! सबसे थोड़े अन्तीपिक मनुष्य नपुंसक, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमि के मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुण, इस प्रकार यावत् पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह के कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक दोनों संख्येयगुण हैं।
__ (५) हे भगवन् ! इन नैरयिक नपुंसक, रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक यावत् अधःसप्तम पृथ्वी नैरयिक नपुंसकों में, तिर्यंचयोनिक नपुंसकों में-एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों में, पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक् नपुंसकों में, यावत् वनस्पतिकायिक तिर्यक् नपुंसकों में, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसकों में, जलचरों में, स्थलचरों में, खेचरों में, मनुष्य नपुंसकों में, कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसकों में, अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसकों में अन्तीपिक मनुष्य नपुंसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! सबसे थोड़े अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक नपुंसक, उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे यावत् दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे अन्तर्वीप के मनुष्य नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमिक म. नपुंसक दोनों संख्यातगुण, उनसे यावत् पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक दोनों संख्यातगुण, उनसे रत्नप्रभा के नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक् नपुंसक संख्यातगुण, उनसे जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक् नपुंसक संख्यातगुण, उनसे चतुरिन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक विशेषाधिक,